जनकल्याण को धरा पर आयी गंगा
दो दिन बाद देश में गंगा दशहरा कि धूम होगी . ज्येष्ठ मॉस के शुक्लपक्ष कि दसमी को हर वर्ष गंगा दशहरा मनाया जाता है . पुरानो में वर्णित कथाक्रम के अनुशार मन जाता है कि इसी दिन धरती पर गंगा मैया का अवतरण हुआ था. ऋग्वेद में कही -कही गंगा का उल्लेख आया है, लेकिन पुरानो में तो गंगा अवतरण कि कथा का बार रोमाचित है .
महाप्रतापी रजा सागर ने अस्व्मेध यझ संपन्न कर अस्व्मेध का घोर छोरने कि तैयारी कि. यह घोर चारो तरफ दूर दूर के राज्यों में घूम कर यदि वापिस आपनी राजधानी आ जायेगा और किसी द्वारा पाकर न जायेगा , तो मना जाता था कि अस्व्मेध करने वाला रजा चकवर्ती सम्राट कि उपाधि वाला हो गया. इसके बिपरीत यदि किसी रजा ने उस घोरे को पकर लिया ,तो इसे चुनौती मान कर उस घोरे के पीछे चल रहा सैन्य दल उस रजा से युद्ध करता था .और उसे हरा कर घोरे को मुक्त कर आगे बढ़ता था . यदि सैन्य दल उस रजा को परस्त नहीं कर पाया तो , उस रजा को चक्रवर्ती बन पन संभव नहीं था .
जब राजा सगर अस्व्मेध का घोर छोरने का साडी तैयारी पूरी कर चुके थे , उससे पहले रात्रि में हि देवराज इंद्रा ने राजा कि अस्व्शाला से घोरे को चुरा लिया . सगर के प्रक्रम से इंद्रा डरा हुआ था कि यदि वः चक्रवर्ती राजा बन गया , तो कही आगे चल कर कही वह स्वर्ग पर भी कब्ज़ा कर इन्द्रसान न छीन ले . इसलिए अस्व्मेध में बाधा डालने के लिए इंद्रा ने घोरा को चुरा लिया और चुरा कर दूर कपिल मुनि के अस्राम में घोरे को चुपके से बांध दिया . इधर सुबह घोर छोरने के लिए देखा तो घोर नदारत . अफरातफरी मंच गया कि आखिर घोर कहा गया . घोरे कि खोज में सैन्य दल निकल पड़े अलग अलग दिशाओ में .
उल्लेख आता है कि सूर्य वंशी राजा के 60 हजार पुत्र थे ओ भी अलग दल बना कर पिता कि सम्मान के रक्षा के लिए निकल पड़े .घोरे कि खोज में .
खोजते खोजते धरती का छोर आ गया और सामने देखा तो समुन्द्र कि अथाह जल दूर दूर तक फैला था .आस पास खोजा तो उसने पाया कि कोई ऋषि आपने अस्राम में तपस्या कर रहा है . और घोर वही बंधा है . सगर कि पुत्रो ने घोरे को पहचान लिया और आपना क्रोध व्यक्त करने लगा .इसी क्रोध में एक पुत्र ने ऋषि को ललकारा कि घोर चुरा कर अब यहाँ ताप कर रहे हो.. इसी बीच ऋषि मुनि का ध्यान टुटा . और जैसे हि उन्होंने अखे खोली , आंखे से निकले तेज से सगर के 60 हजार पुत्र भस्म हो गया .
इधर रजा सगर परेशां था कि सैन्य तुक्रिया वापस लौट आज्यी , पर घोरे का कही पत न चला . घोरे कि खोज में 60 हजार पुत्र गए वापिस नहीं लायेते .
चिंतित रजा आपने पोत्र अंशुमन से कि व्यथा कि पुत्रो कि खोज में जाने को कहा . दुन्ध्ते दुन्ध्ते जब अंशुमन उसी अस्राम में पंहुचा तो चारो तरफ रख का डेढ़ देख कर चौक गया . उसने ऋषि को देख कर प्रणाम किया और आपनी चिंता बताई .ऋषि ने कहा मै कपिल मुनि हु और ये जो रख के ढेर तुम देख रहे हो , ये रजा सगर कि पुत्रो कि भस्म है . कह कर ऋषि ने पूरा वृतांत अंशुमन को बता दिया . अंशुमन ने कहा कि ये सब अकाल मौत मरे है , इनकी मुक्ति कैसे होगी.. कपिल मुनि ने उपाय सुझाये कि स्वर्ग से गंगा को लेन पर हि उसके पवित्र स्पर्श से इनकी मुक्ति हो संभव है.ऋषि ने बताया कि विष्णु के चरणों से निकली गंगा गंगा ब्रह्मा जी के कमंडल में विराजमान है . ब्रह्मा कि स्तुति करने से हि वह प्रसन होकर गंगा को धरती पर भेजेंगे .अंशुमन ने खूब कठिन ताप किया . लेकिन ब्रह्मा जी प्रसन्न नहीं हुए . उनके बाद इसी साधना में अन्शुमकं के पुत्र राजा दिलीप ने भी आपने ताप से ब्रह्मा को प्रसन्न करने कि कोशिस कि . अंतत: पिता के बताये ताप को पूरा करने के लिए भागीरथ ने बीरा उठाया . आखिर कार ब्रह्मा प्रसान हुए और वरदान मांगने को कहा , तब राजा भागीरथ ने आपने पुरखो के मुक्ति को गंगा को धरती पर भेजने कि कि प्राथना कि .ब्रह्मा के कहने पर गंगा स्वर्ग चोर कर पृथ्वी लोक में आने को तैयार नहीं थी , तब ब्रह्मा जी ने गंगा को लोककल्याण के लिए धरती पर अवतरित होने का अनुरोध किया.\
गंगा मन तो गयी , लेकिन स्वर्ग से धरती पर उनके त्रिव बेग को संभालेगा कौन , तब ब्रह्मा के अनुरोध से महादेव गंगा को आपनी जटाओ में गंगा को धारण करने के तैयार हुए. इस तरह गंगा सिवजी के जटाओ से होति हुई धरती पर अवतरित हुई.रजा भागीरथ आगे आगे चलते रहे और गंगा उस मार्ग का अनुशरण करती हुई कपिल मुनि के अस्राम पहुची जहा उनके पवित्र जल का स्पर्श पाकर भागीरथ कि पुरखो कि मुक्ति हुई.
भागीरथ गंगा को धरती पर लाये इसलिए उन्हें भागीरथी भी कहे जाने लगा . सामने समुन्द्र को देख कर गंगा का विलय हुआ , वह भी एक माहन तीर्थ बन गया गंगासागर , बंगाल कि खरी में यह गंगा और सागर कि संगम हिन्दुओ का पुन्य तिथि है, जिसके महत्त्व को दर्शाते हुए लोकोक्ति बन गयी . सारे तीर्थ बार बार , गंगा सागर एक बार ' यानि कि जो पुन्य सरे तीर्थ को बार बार करने से मिलता है , वह गंगासागर में एक बार मिलता है. एक बार सनान करने से मिलता है.
यह गंगा सागर में एक बार स्नान करने से प्राप्त हो जाता है. गंगोत्री से गंगा सागर तक कि यह करीब 2500 किमी कि यात्रा गंगा कि पवित्रता , निर्मलता,अविरलता और प्रवहमानता के रूप में अनादी काल से भारत कि संस्कृति का तो पोषक रही है.मनुष्य जीवन विशेषत: हिन्दुओ के लिए जीवन कि प्रेरणा मणि जाती है.गंगा जल जहा मुक्ति का प्रतिक मन जाता है , व्ही रोगनाशक भी . वर्षो तक रखे रहने पर भी गंगाजल कि यह विशेषता है , कि वह प्रदूषित नहीं होता .
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