jheel ban jaao झील बन जाओ
एक बार एक युबक किसी गें मास्टर के पास पंहुचा .
और वह युवक मास्टर जी से कहा कि ,मास्टर जी ,मै आपने जिन्दगी से बहुत परेसान हु ,
कृपया आप हमें इस परेशानी से निकलने का उपाय बताइए .
तब मास्टर जी ने उस युवक से बोले कि ग्लाश में पानी के साथ एक मुठ्ठी नमक दाल कर , उस एक ग्लाश पानी को पी जाओ .
युवक ने ऐसा हि किया .
इसक स्वाद कैसा लगा , मास्टर ने पूछा |, युवक थूकते हुआ ,बोला बहुत ख़राब बहुत बेकार ,
मास्टर जी मुस्कुराते हुए बोले कि , एक बार फिर से एक मुठ्ठी नमक ले लो , और मेरे पीछे पीछे आओ .
दोनों धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे ,स्व्छय पानी से बनी एक झील के सामने रुक गये ,
और अब दोनों एक नावपे बैठे ,और झील में कुछ दूर जाने के बाद ,
मास्टर जी ने उस युवक से कहा कि अब उस नमक को ,पानी में दाल दो , और इस पानी को पियो, मास्टर जी ने निर्देश दिया .
युवक ने बिल्कुल एषा हि किया
युवक ने उस झील कि पानी को पिया , ,तो एक बार मास्टर जी ने फिर से पूछा कि क्या , बताओ कि इस पानी का स्वाद कैसा लगा .
युवक ने बोला कि ये पानी तो बहुत अच्छा है , और बहुत मीठा भी., मास्टर जे अब उसके साथ चलने लगे ,और उस युवक का हाँथ थमते हुए बोला कि , कि जीवन कि दुःख बिलकुल नमक कि तरह है .
, ना इस से कम और न इस से ज्यादा . जीवन में दुःख कि मात्र व्ही रहती है ., लेकिन हम कितने दुःख का स्वाद लेते है , ये हम पे निर्भर करता है ., हम उसे किस पात्र में दाल रहे है ., बस तुम जब दुखी हो तो , खुद को बार कर लो , गिलास मत बनो , झील बन जाओ.
बाय दोस्तों.
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,दोस्तों आपको अगर ये स्टोरी अछि लगी हो तो आप हमें कमेंट के माध्यम से जरुर बतये.
और वह युवक मास्टर जी से कहा कि ,मास्टर जी ,मै आपने जिन्दगी से बहुत परेसान हु ,
कृपया आप हमें इस परेशानी से निकलने का उपाय बताइए .
तब मास्टर जी ने उस युवक से बोले कि ग्लाश में पानी के साथ एक मुठ्ठी नमक दाल कर , उस एक ग्लाश पानी को पी जाओ .
युवक ने ऐसा हि किया .
इसक स्वाद कैसा लगा , मास्टर ने पूछा |, युवक थूकते हुआ ,बोला बहुत ख़राब बहुत बेकार ,
मास्टर जी मुस्कुराते हुए बोले कि , एक बार फिर से एक मुठ्ठी नमक ले लो , और मेरे पीछे पीछे आओ .
दोनों धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे ,स्व्छय पानी से बनी एक झील के सामने रुक गये ,
और अब दोनों एक नावपे बैठे ,और झील में कुछ दूर जाने के बाद ,
मास्टर जी ने उस युवक से कहा कि अब उस नमक को ,पानी में दाल दो , और इस पानी को पियो, मास्टर जी ने निर्देश दिया .
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युवक ने बोला कि ये पानी तो बहुत अच्छा है , और बहुत मीठा भी., मास्टर जे अब उसके साथ चलने लगे ,और उस युवक का हाँथ थमते हुए बोला कि , कि जीवन कि दुःख बिलकुल नमक कि तरह है .
, ना इस से कम और न इस से ज्यादा . जीवन में दुःख कि मात्र व्ही रहती है ., लेकिन हम कितने दुःख का स्वाद लेते है , ये हम पे निर्भर करता है ., हम उसे किस पात्र में दाल रहे है ., बस तुम जब दुखी हो तो , खुद को बार कर लो , गिलास मत बनो , झील बन जाओ.
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