Monday, 10 October 2016

बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक: महापर्व दशहरा | Hindi Essay on Dussehra


Hindi Essay on Dussehra Festival Or Vijayadasami

दशहरा / विजयदशमी पर्व पर निबंध

“दशहरा” शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है। दश का अर्थ ‘दशानन’ यानि दस मुखों वाले रावण से है और ‘हारा’ का सम्बन्ध रावण को राम से मिली पराजय से है। इस त्योहार का आयोजन अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को होता है। इसी शुभ दिन को प्रभु श्री राम ने दुर्दांत राक्षस रावण का संहार किया था। अतः इस पर्व को बुराई पर अच्छाई के रूप में मनाया जाता है।
Hindi Essay on Dussehra दशहरा पर निबंध
राम ने रावण को मारा…चलिए हम भी मारें अपने भीतर के रावण को…
“विजयदशमी” (Vijayadasami) शब्द भी संस्कृत शब्द ‘विजय’ और ‘दशमी’ से लिया गया है। यहाँ पर दशमी का मतलब हिन्दू महीनो के दसवें दिन से है। भगवान् श्री राम ने दशमी के दिन ही रावण का वध किया था और उसपर जीत हासिल की थी। इसीलिए दशहरा पर्व को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है। दशहरा के ठीक 20 दिन बाद दीपावली मनाई जाती है, क्योंकि इसी दिन भगवान् राम, सीता मैया और अनुज लक्ष्मण के साथ लंका से वापस लौटे थे।
दशहरा और नवरात्री दोनों पर्व आपस में जुड़े हुए हैं। इसके पीछे की कहानी ये है कि-
माँ दुर्गा ने राक्षस महिषासुर को उसके पापों की सजा देने के लिए उससे प्रचंड युद्ध किया, जो नौ दिन और नौ रात्री चला। अन्तः अश्विन शुक्ल पक्ष के दसवें दिन माँ दुर्गे ने महिषासुर का वध कर दिया।
इसलिए दशहरा को नवरात्रि या दुर्गोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है और माँ के विभिन्न रूपों की अराधना की जाती है।
दशहरा को विजयादशमी, नवरात्रि के अलावा बीजोया, आयुध पूजा आदि नामो से भी जाना जाता है।
दशहरा पर्व के दौरान पूरे भारत में रामलीला का आयोजन होता है और इस पर्व की महत्ता समझने के लिए हमें भी राम लीला से जुडी बातें जानने चाहियें और यह भी समझना चाहिए कि आखिर रावण में ऐसा क्या था कि उसका वध करने के लिए भगवान् को श्री राम रूप में अवतार लेना पड़ा।

लंका नरेश रावण 

रावण कोई साधारण राक्षस नहीं था। दक्षिण दिशा मे सोने, हीरे, मोती, और कीमती रत्नो से सुसज्जित लंका नगरी मे निवास करने वाला रावण समस्त वेदो का ज्ञाता था। मायावी शक्ति और युद्ध कौशल मे पारंगत था। तथा बाहुबल मे वज्र के समान शक्तिशाली था। रावण के परिवार मे उसका भाई विभीषण नीतिज्ञान मे निपुंण, और कुंभकरण एक महाकाय प्रचंड योद्धा था। तथा रावण पुत्र मेघनाद (इंद्रजीत), अतिकाय, जैसे उच्च कोटी का असुर योद्धा था।
चंद्रहास मुखी खड़ग (तलवार) हाथ मे ले कर जब रावण युद्ध के लिए निकलता था, तब शत्रु डर के मारे काँप उठते थे। रावण और उसके पराक्रमी पुत्र, एक सेना के समान सशक्त थे। स्वयं रावण घोर तपस्वी, और बहुत से दैवी अस्त्रों, शस्त्रो तथा शास्त्रों का ज्ञाता था और साथ ही रावण परम शिवभक्त भी था।

दशरथ नन्दन और माता कौशल्या के दुलारे पुत्र राम

श्रीराम का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष क़ी नवमी को अयोध्या में हुआ था। इस पावन दिन को हम रामनवमी के रूप में मनाते हैं।
करुणानिधान, क्षमामूर्ति, दयासागर, प्रभु श्री राम को अपने तीनों प्रिय भाई लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न पर विशेष प्रीति थी। भरत माता केकैयी और लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न माता सुमित्रा के गर्भ से जन्मे थे।
सारे भाई श्री राम को अपना आदर्श मानते थे। अपने पुत्र भरत को अयोध्या नरेश बनाने की लालसा मे माता केकैयी उनको दिए गए वचन के बदले मे राजा दशरथ से राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांगती हैं। और फिर राजा दशरथ अपने दिल पर पत्थर रख कर वचन की मर्यादा के लिए राम को वनवास जाने की आज्ञा देते हैं। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए रघुवीर वनवास के लिए प्रस्थान करते साथ, उनके साथ देवी सीता और भाई लक्ष्मण भी वन मे चल देते हैं। मृत्यु से पहले राजा दशरथ, केकैयी का त्याग करते है। और पुत्र वियोग मे  प्राण त्याग  देते हैं।
तीनों लोको के स्वामी श्री राम वन मे एक साधारण मानव की भांति, कठोर प्रकृति का सामना करते हुए वनवास भुगतते है। और धर्म, कर्तव्य, का पालन करते हुए आदर्श मानव आचरण का द्रष्टांत स्थापित करते हैं।

देवी सीता का रावण द्वारा हरण

महाबली रावण की बहन शूर्पणखा वन मे विचरण करते-करते श्री राम की कुटीर पर पहुँच जाती है। वह श्री राम को आंगन मे देख कर मोहित हो जाती है। और उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखती है। श्री राम शूर्पणखा के प्रस्ताव को विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर के भाई लक्ष्मण से पूछने को कहते हैं। लक्ष्मण खुद को श्री राम का दास बता कर शूर्पणखा के प्रस्ताव को मना कर देते हैं। क्रोध की मारी शूर्पणखा राम की अर्धांग्नी देवी सीता को मारने के लिए झपटती  है। तभी लक्ष्मण शूर्पणखा को पकड़ कर उसकी नाक काट देते हैं।
अपने इसी अपमान का बदला लेने शूर्पणखा रावण को देवी सीता को हर लेने को कहती है। रावण कपट से साधू का वेश धारण कर के देवी सीता का हरण ऐसे समय पर करता है, जब श्री राम और लक्ष्मण कुटीर पर नहीं होते हैं।

प्रभु श्री राम का लंका पर आक्रमण

संसार को पापी, दुष्ट, अधर्मी, राक्षस राज रावण के अत्याचार से मुक्त कराने, और अपनी भार्या सीता को लंका से मुक्त कराने के उद्देश्य से श्री राम अपने भ्राता लक्ष्मण, वानर राज सुग्रीव, जांबवान, पवन पुत्र हनुमान, और विराट वानर व रीछ सेना सहित लंका नगरी पर आक्रमण करते हैं।
रावण के पुत्र, भाई, मित्र, प्रगाढ़ योद्धा, इस महायुद्ध मे मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अंत मे बचे रावण को प्रभु श्री राम देवी सीता को मुक्त कर के युद्ध समाप्त करने का परामर्श भी भिजवाते है। पर घमंडी राक्षस रावण काम, क्रोध, मोह, माया के वश में होने के कारण श्री राम का यह विकल्प ठुकरा देता है। और अंतिम भीषण युद्ध मे अहंकारी रावण मृत्यु को प्राप्त होती है।

सार –

महापर्व दशहरा अनीति, अत्याचार, और बुराई पर धर्म, सत्य, और अच्छाई की विजय का प्रतीक है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की इसी कथा का वर्णन भारत के कई जगहों पर दशहरे के दिन रामलीला रचा कर याद किया जाता है। और राम लीला के साथ कई जगहों पर मेले भी लगते हैं। कई नगरो शहरो मे दशहरे के त्योहार पर तरह तरह की रौशनी व्यवस्था कर के अद्भुत प्रदर्शन का आयोजन किया जाता है। दशहरा पर विभिन्न तरह की मिठाईया और पकवान का दौर भी चलता है। इस पर्व पर अलग-अलग क्षेत्र के लोग भिन्न-भिन्न तरीके से इस त्योहार का आयोजन कर के ईश्वर के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा का प्रदर्शन करते है।
प्राचीन समय मे राजा महाराजा दशहरा के दिन सशत्र पूजा भी करते थे। और कोई नया कार्य आरंभ करने के लिए नवरात्री का समय व दशहरा का दिन शुभ मानते थे। आज के युग मे भी कई लोग नया व्यवसाय, व्यापार शुरू करने के लिए दशहरा का दिन चुनते हैं।

दशहरा पर्व पर दुर्गा पूजा 

Hindi Essay on Dussehra दशहरा पर निबंध
पंडालों में सजी माँ दुर्गा की प्रतिमा
दशहरा के दौरान भारत के कई शहरों, विशेषकर कोलकाता में धूम-धाम से दुर्गा पूजन किया जाता है। इस दौरान शहर के प्रमुख स्थानों पर बड़े-बड़े  भव्य पांडाल लगाए जाते हैं। जिसे जगमगाती रौशनी व लाइटों से सजाया जाता है। पांडाल के अन्दर माँ दुर्गा व अन्य देवी देवताओं की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। सिंह पर सवार माँ दुर्गा का राक्षस वध करते हुए सजाई गयी मूर्तियाँ न सिर्फ बच्चों बल्कि बड़े लोगों को भी खूब आकर्षित करती हैं।
दुर्गा पूजा पर स्त्रियाँ मनमोहक गरबा इत्यादि धार्मिक नृत्य के साथ माँ दुर्गा की आरती कर  उपासना करती हैं। दुर्गा पूजा पर उत्साही लोगो के हुजूम के साथ, रंगीन रोशनी मै रंगा हुआ शहर एक अदभूत चित्र का सर्जन करता है। भारत के कई हिस्सों में दुर्गा पूजा का महोत्सव पूरे चार दिन तक चलता है। और उसके पश्चात दुर्गा माँ की स्थापित की हुई मूर्ति को नदी यां सरोवर में विसर्जन करने की प्रथा है।

दशहरा पर्व पर राम लीला, रावण दहन व मेले का आयोजन

दशरहा पर्व के दौरान राम लीला मैदानों में कई दिनों तक राम लीला का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर लोग अपने धर्म-जाति भूलकर आयोजनों में शामिल होते हैं। इन्ही मैदानों में बच्चों और बड़ों के मनोरंजन के लिए मेले लगाये जाते हैं, जिसमे तरह-तरह के झूले, खाने-पीने के स्टाल लगते हैं व आकर्षक सामान बेचे जाते हैं।
दशमी के दिन रावण का पुतला बना कर उसे दहन करने की प्रथा है। इस अवसर पर रावण, कुम्भकरण व मेघनाद के विशाल पुतले बनाए जाते हैं और उन्हें पटाखों से बाँध दिया जात है। राम लील में श्री राम का पात्र निभा रहा व्यक्ति अपने तीर में आग लगा कर रावण को मारता है और देखते-देखते ही रावण धू-धू कर जलने लगा है। यह दृश्य बुराई पर अच्छाई की विजय को दर्शाता है।

स्थान विशेष पर दशहरा पर्व 

गुजरात में नवरात्री के नौ दिन पहले से गरबा खेलने का कार्यक्रम होता है। जिसमे सभी उम्र के नर-नारी दांडिया रास, और गरबा खेलते हैं। और माँ दुर्गा की उपासना व हवन-पूजा का अनुष्ठान किया जाता है।दशहरा के दिन रावण का पुतला जला करा अनुष्ठान / उत्सव की पूर्णाहुति की जाती है। नवरात्र गरबा के दौरान बहुत सारे श्रद्धालु व्रत भी रखते हैं नवरात उत्सव मे सभी उम्र के नर-नारी अतरंगी, चमकदार, सजीले पौशाक पहन कर हर्षौल्लास के साथ इस त्योहार को मनाते हैं।
दशहरा पर्व के दिन दिल्ली मे लंका कांड अध्याय पर रामलीला रचाई जाती है।
मैसूर का दशहरा मशहूर है। इसे देखने विदेशी सैलानी भी इकठ्ठा होते हैं। मैसूर महल को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और सुसज्जित हाथियों का भव्य जूलूस निकाला जाता है।
हिमाचाल प्रदेश में मनाया जाने वाला कुल्लू का दशहरा भी काफी प्रसिद्द है। यहाँ पर लोग नए-नए कपड़े पहन कर तैयार होते हैं और अपने ईष्ट देवी-देवताओं को पालकी में बैठाकर घूमाते हैं। इस दौरान ढोल-नगाड़े तथा अन्य वाद्य यंत्र बजाये जाते हैं।

दशहरा के सही मायने:

अक्सर, जब बुराई की बात होती है तो इंसान बाहर की ओर देखता है लेकिन असल में बुराई तो उसके अन्दर ही होती है।
कबीर दास जी ने कहा भी है,
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थात,  जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला, लेकिन  जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
मित्रों, दशहरा पर्व मनाने का सही अर्थ तभी है जब हम इससे मिलने वाले सन्देश, ” बुराई पर अच्छाई की जीत” को अपने जीवन में लाएं। और अपने अन्दर की बुराई को ख़त्म करें। फिर चाहे वो बुराई, झूठ बोलने की आदत, अधिक क्रोध करना, फिजूलखर्चीमें पैसे उड़ाना या फिर कोई नशा करना ही क्यों न हो! हमें दशहरा पर्व के पावन अवसर पर प्रण लेना चाहिए कि हम अपने भीतर के राम से अपने भीतर के रावण का वध करेंगे और इस समाज में अच्छाई का दीप रौशन करेंगे।
दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं!
धन्यवाद
Gaurav kumar
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1 comment:

  1. संत कबीर के दोहे से आप बहुत अच्छी सीख प्राप्त कर सकते है |
    Gossip Junction से भी आप बहुत से दोहे पढ़ सकते हैं |

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