मधुवाला बायोग्राफी इन हिंदी by गौरव कुमार
आज मै आप सबको मधुवाला के बारे में बता रहा हु.
मधुवाला, एक ऐशी अदाकारा . जिसकी अदा का कौन कायल नहीं थे , और आज भी उनकी अदा का कायल है . और आज के दौर में उनकी अदा के कायल लोग .
मधुवाला एक सुरती के परी जैसी थी. मुस्कराहटो और खूबसूरती का पैगाम लिए एक ऐशी परी
14 feb 1933 कि delhi कि जमी पर आई जिसकी वजूद राजकुमारी जैशा था | हा लेकिन हकीकत में उसकी जन्म एक ऐशी गरीब मुश्लिम परिवार में हुआ जहा दो जून कि रोटी के लिए मशकत कर्नू पड़ती थी. जन्म पर न कोई जशन , न कोई ख़ुशी , वो पल एक साधारण सी घर कि साधारण सी घटना कि थी., हां लेकिन ये लड़की साधारण सी नहीं थी.
अम्मी और अब्बा ने मुमताज नाम रख दिया , इनकी पूरा नाम मुमताज बेगम थी जहा देल्हावी बचन से हि मुमताज कि हसी बिखेरती थी |टोटल 11 भाई बहनों में मुमताज पांचवी औलाद थी . इनकी बचपन बहुत हि शख्त और शंघर्स व्यतीत हुआ | इनकी बचपन में न रजा रानी कि कहानी थी न हि खिलौने और न हि गुबबारे ?
चौकलेट और गुरिया तो इनसे कोशे दूर थी..
मुमताज को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था क्यूंकि वो तो मुस्कराहट का गहना पहन कर अवतरित हुई थी | ऐसा मुमताज के लिए कही जाती है ..........................................................
मुहब्बत जिसके दम से थी,
वो इस धरती कि जन्नत थी ,
वो जब भी मुस्कुराती थी
बहांरे खिलखिलाती................थी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मुमताज के पिता अताउल्ल्ला पेशावर से इम्पिरिअल टोबैको कंपनी में काम करते थे | लेकिन कंपनी के बंद हो जाने से उनको delhi आना परा और बेरोजगारी कि ग्रहण परिवार को लग गया | इशी मुशीबत कि घरी में चार भाई बहन भगवान् के प्यारे हो गए थे | मुमताज कि हंशी भी काफूर हो गयी, जैसे उनकी हशी को किसी कि नजर लग गयी हो.
इस्सी गरीबी कि दौर में अताउल्ला को एक फ़क़ीर कि बात याद आई , जिसने मुमताज को देख कर ये कहा कि ये लड़की बहुत नाम कमाएंगी|इसके माथे पर नूर है.| जाते जाते फ़क़ीर ने मुमताज को देखकर ये कह गया था कि , ये लड़की बहुत नाम करेंगी... ये लड़की बहुत नाम करेंगी|इश्के माथे पर नूर है. जाते जाते फ़क़ीर ने मुमताज के सर पर हज्न्थ रखते हुए यह कहकर गया था कि तुझसे जल्दी मिलूँगा बम्बई में.\
मुमताज के पापा को लगा कि सच हि हो तो , मुमताज तो कोहिनूर है. | अताउल्ला मुमताज को लेकर मुंबई के लिए निकल पड़े ,ताकि वह मुमताज को काम मिल जाए. मुमताज कि माँ, आयशा बेगम को ये रास नहीं आया कि उनकी नाजुक सी बेटी पर परिवार चलने का दैत्व दिया जाए |
जब मुमताज को बाम्बे जाने कि बात पत चली तो वो बहुत खुश हुई क्यूंकि उसे फिल्मो का बहुत सुक था बचपन से हि. लेकिन उसे क्या पत था कि ओ आपना बचपन delhi में छोर कर जा रही है.
बाम्बे पहुच कर मुमताज के पिटे उसे बाम्बे टॉकीज लेकर [पहुचे , वहा उस ज़माने कि सफल अभिनेत्री मुमताज शांति कि नजर उस बच्ची पर पड़ी उन्होंने उसका नाम प्यार से पूछा , यही पल बच्ची मुमताज का टर्निंग पॉइंट था . उसे बसंत फिल्म में 100 रु पर काम मिल गया | मुमताज के पिता का दिमाग तेज था ,उसने कहा ये तो बच्ची के लिए है. इसके साथ मै भी रहूँगा तब उसे भी 50 रु मिलना तय हुआ . ये उनकी किस्मत बदलने का दिन था |
9 वर्ष कि उम्र में सफल कैरिएर कि शुरुआत कि मुमताज ने कि थी.| बतौर चाइल्ड एक्ट्रेस खूब प्रशिधि मिलने लगी . इशी दौरान मुमताज कि मुलाक़ात उस दौर कि एक्ट्रेस देविका रानी से हुई | देविका रानी मुमताज कि सुन्दरता और नि:स्छल हंशी पर फ़िदा हो गयी और उसे आपने पास बुलाकर बोली__
आज से तुम्हारा नाम मधुवाला होगा|
यही से मुमताज मधुवाला के नाम से पहचानी जाने लगी थी |
उनकी अदाकारा कि चर्चे चारो तरफ होने लगी थी 1947 में केदार शर्मा ने मधुवाला को नील कमल में बतौर लीद रोल एक्ट्रेस लेने का निर्णय लिया | हालाँकि उस समय मधुवाला 14 वर्ष कि थी कई लोगो का मन्ना था कि ये उम्र लीद रोल के लिए सही नहीं है., फिर भी मधुवाला ने नील कमल में हेरोइन कि काम कि उनके हीरो राजकपूर थे | ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर तो कमाल नहीं कर पायी हा लेकिन मधुवाला कि तारीफ बहुत हुई . परिवार कि मुफुलिशी कि दौर समाप्त हो gayi thi
कमाल अमरोही ने मधुबालाा की खूबसूरत अदाकारी को एक नया आयाम दिया। कमाल अमरोही ने महल फिल्म में मधुबालाा को हिरोइन बनाया जबकी इस फिल्म में सुरैया पहले से साइन की जा चुकी थीं। उनको हटाने का मतलब था 40,000 रूपये का डूबना फिर भी कमाल अमरोही ने मधुबाला के साथ फिल्म बनाई। महल रीलीज हुई और इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया। फिल्म का गाना, “आयेगा आने वाला” सबके दिलो दिमाग पर छा गया। कमाल अमरोही की भी बतौर डायरेक्टर ये पहली फिल्म थी। इसी फिल्म से लता मंगेशकर को भी नया आयाम मिला था।
कमाल अमरोही से मधुबालाा का प्यार खूब परवान चढा लेकिन मधुबालाा की किस्मत ऊपर वाले ने न जाने किस हड़बड़ी में लिखी थी। उनकी जिंदगी में सब कुछ था, लेकिन उनकी नज़र से देखें तो उनसे ज्यादा दुखी और परेशान और कोई नही था। बचपन से ही काम में खुद को खपा देने वाली मधुबालाा वक्त से पहले बड़ी हो गई थी। इसी दौर में उन्हें एक ऐसी बीमारी ने ऐसा घेरा कि उनका साथ अंत तक नहीं छोड़ा।\\
प्रसिद्धी के इस दौर में उन्हें अपनी बिमारी को जाहिर करने का भी अधिकार नही था। उनके दिल में छेद हो गया था, जिसका पता एक सुबह खांसी आनेपर मुहं से खून निकलने पर चला। लेकिन पिता की सख्त हिदायत थी कि किसी को इसके बारे में पता नही चलना चाहिये। मधुबालाा ही उस घर की समृद्धी का स्रोत थी।
फिल्मी दुनिया का चमकता सच यही है कि, कितनो को भीतर ही भीतर मरना पड़ता है। बिमारी का पता चलते ही इंड्रस्टी बाहर का रास्ता दिखा देती। इसलिये मधुबालाा अपना दर्द चुपचाप सहती रही और चमकते संसार को मुस्कराहटें देती रही। दर्द और मुस्कराहटों की ये लुकाछुपी 1954 में बहुत दिनों फिल्म की शुटिंग के दौरान खत्म हो गई। शुटिंग के दौरान ही मधुबालाा को खून की उल्टी हुई जिसकी खबर आग की तरह पूरी फिल्म इंड्रस्टी में फैल गई। हालांकी मधुबालाा की बेहतरीन अदाकारी के आगे ये इस बात का कुछ ज्यादा असर नही हुआ। अपने काम के प्रति उनकी लगन हर सवाल का जवाब था।
एक बहुत ही खास किस्सा यहाँ शेयर करना चाहेंगे जो उनकी एक्टिंग की भूख को बंया करता है। 1954 की ही बात है, मशहूर फिल्मकार बिमल रॉय बिराज बहू बनाने की योजना बना रहे थे। मधुबालाा इसमें काम करना चाहती थीं। लेकिन मधुबालाा का मार्केट रेट बहुत हाई था तो बिमल राय उनके प्राइज रेट देखकर उन्हे इग्नोर कर दिया और उस समय की स्ट्रगलिंग एक्ट्रेस कामिनी कौशल को साइन कर लिया। मधुबालाा को जब ये पता चला तो वो एक रूपये के साइनिंग अमाउंट पर उस फिल्म में करने को राजी हो गई।
मधुबालाा ने 12 वर्ष की आयु में फिल्म निर्माता मोहन सिन्हा से कार चलाना सीखा था। वो हॉलीवुड फिल्म की भी प्रशंसक थीं और उन्होने धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलना भी सीखा लिया था। मधुबालाा के अधिकांश गीतों को लता मंगेशकर और आशा भोसले ने गाया है। फिल्म इंडस्ट्रीज में कहा जाता है कि, मधुबालाा लता जी और आशा जी के लिये लकी थीं। 1949 में महल फिल्म में मधुबालाा पर फिल्माया आयेगा आने वाला गीत ने लता मंगेशकर को बुलंदियो पर पहुँचा दिया था।
उन दिनो आसिफ अपनी फिल्म मुग़ल-ए-आज़म में एक ऐसी अदाकारा को तलाश रहे थे जिसमें मुगलई शानो-शौकत होऔर प्रेम की इंतहा भी। मधुबालाा में ये दोनो ही खूबी थी। उन्होने मधुबालाा और दिलीप कुमार को लेकर मुगले आज़म शुरु की।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि, मुग़ल-ए-आज़म को मधुबालाा की अदाकारी ने अमर बना दिया। फिल्म का एक-एक सीन मोहब्बत की रौशनी से रौशन है। मधुबालाा और दिलीप कुमार का रोमांस इस फिल्म से निखर उठा था। मधुबालाा मुगले आज़म की शुटिंग के दौरान बहुत खुश रहती थी। वे दोनों अक्सर लॉन्ग ड्राइव पर जाते थे। लेकिन प्रेम के मामले में किस्मत मधुबालाा पर मेहरबान नही थी। मोहब्बत की रौशनी पर गलतफहमियों का बादल छा जाने से ये रिश्ता अपने अंजाम पर नही पहुँच सका। मुग़ल-ए-आज़म के अंतिम दृश्य में जब मधुबालाा को दिवार में चुना जा रहा था वो निर्विकार खड़ी थी, उसकी आँखें कह रहीं थी कि अब जिंदगी में कुछ नही चाहिये।
मुग़ल-ए-आज़म बनने में वक्त अधिक लग रहा था तो मधुबालाा के पिता ने एक लाख फीस मांगी जबकि उस समय दिलीप कुमार का पारिश्रमिक 50,000 ही था। हालांकी आसिफ ने ये पारिश्रमिक मंजूर कर लिया और बाद में तो मधुबालाा को एक लाख से ज्यादा ही एमाउंट मिला। दिलीप कुमार को भी पांच लाख दिया गया था।
मधुबालाा की किस्मत उनसे लगातार लुका-छिपी का खेल खेल रही थी। एक तरफ तो उनकी सफलता का ग्राफ ऊपर चढ रहा था तो दूसरी तरफ उनका स्वस्थ्य गिरता जा रहा था।
एक तरफ मुगले आज़म, चलती का नाम गाड़ी, मिस्टर एण्ड मिसेज55 जैसी अनेक फिल्में शौहरत की बुलंदियों पर थी और उन्हे विनस ऑफ इंडियन सिनेमा की उपाधी दी जा रही थी वहीँ दूसरी तरफ उनका स्वास्थ लगातार साथ छोड़ रहा था।
अकेलापन भी मधुबालाा को डस रहा था, यूं तो उनके जीवन में कई नायक आये लेकिन मधुबाला को ऐसे साथी की तलाश थी जो उसे उनकी अच्छाईयों और बुराई समेत अपना ले। मधुबाला को उन दिनों किशोर कुमार का साथ बहुत अच्छा लगता था। डॉक्टर्स के अनुसार मधुबाला के पास वक्त बहुत कम था। तबियत बगड़ती देख मधुबालाा को हार्ट सर्जरी के लिये लंदन ले जाया जा रहा था किन्तु उसके पहले किशोर कुमार ने मधुबालाा से कोर्ट मैरिज की और अपनी नई नवेली दुल्हन को लंदन इलाज के लिये भेजा। हालांकि इस रिश्ते से पूरी इन्डस्ट्री खुश नही थी क्योंकि ये एक बेमेल विवाह था। फिलहाल मधुबालाा इलाज कराके वापस भारत आई और किशोर कुमार के साथ रहने लगी लेकिन वहाँ असुविधा की वजह से अपने घर अरेबियन में लौट आई थीं। मौत के फरिश्ते भी उनके घर पर दस्तक देने लगे थे जिसकी आहट हर किसी को सुनाई देने लगी थी। अंतिम समय में वो सब भूल गई थी बस एक चाहत यादे जबां थी कि, मुझे एक बार युसुफ साहब (दिलीप कुमार) को देखना है लेकिन उनकी ये तमन्ना भी अधुरी रह गई।
मोहब्बत की एक बूंद की आखरी ख्वाइश के साथ हिन्दुस्तान की मर्लिन मुनरो 23 फरवरी 1969 को इस दुनिया से रुखसत हो गई। इसी के साथ मुस्कुराहटों के सैलाब और मोहब्बत के पैगाम की कहानी का पटाक्षेप हो गया।
अपने छोटे से जीवनकाल के दौरान मधुबालाा ने 70 से अधिक फिल्मों में काम किया। उन पर तीन जीवनियां लिखी गई और बहुत से लेख प्रकाशित हुए । उनको इस दुनिया को अलविदा कहे कई दशक बीत गया है लेकिन अपने अनुपम सौन्दर्य और अभिनय की बदौलत आज भी भारतीय सिनेमा की आइकॉन हैं।
1990 में मूवी मैग्जीन द्वारा कराये गये सर्वेक्षण से इस बात का खुलासा हुआ है कि मधुबालाा सभी दौर की अभिनेत्रियों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। मधुबालाा जैसी सादगी, सहजता, भोलापन, मासूमियत और सबसे बढकर उनकी अल्हड़ खूबसूरती की झलक अब तक किसी भी नायिका में नज़र नही आई। आज भी उनके विडियो यू ट्यूब पर देखे जाते हैं। उनके ब्लैक एण्ड व्हाइट पोस्टर आज भी बहुत बिकते हैं। डाक विभाग ने भारतीय सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री मधुबालाा की याद में एक डाक टिकट भी जारी किया है।
मधुबालाा की यादगार फिल्में हैं-
बसंत, मुमताज महल, राजपूतानी, नील कमल, पारस, दुलारी, महल, परदेस, हंसते आंसू, मधुबालाा, तराना, बादल, मि. एंड मिसेज 55, राज हठ, गेटवे ऑफ इंडिया, फगुन, काला पानी, हावड़ा ब्रिज, चलती का नाम गाड़ी, दो उस्ताद, जाली नोट, बरसात की रात, मुगल ए आज़म, पासपोर्ट, झुमरु, हाफ टिकट, शराबी, ज्वाला।
मधुबालाा आज भले ही हम सबके बीच में नही हैं किन्तु उनकी आदाकारी और खुशनुमा हंसी अमर है तथा भारतीय फिल्मी संसार की अद्भुत धरोहर है।
मधुबालाा पर दर्शाये कुछ मशहूर गीतों के साथ अपनी कलम को विराम देते हैं……
जब प्यार किया तो डरना क्या…..मोहे पनघट पर नंदलाल छेड़ गयो रे….आयेगा आने वाला……एक लड़की भीगी भागी सी सोती रातों में जागी सी……हाल कैसा है ज़नाब का…..इक परदेशी मेरा दिल ले गया…..मेरा नाम चिन चिन…..मोहब्बत की झूठी कहानी …
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