Wednesday, 1 June 2016

भले आदमी की परछांई : The Shadow of a Noble Man

भले आदमी की परछांई : The Shadow of a Noble Man

seeking angelबहुत पुरानी बात है. कहीं एक भला आदमी रहता था जो सभी से असीम प्रेम करता था और सारे जीवों के प्रति उसके ह्रदय में अपार करुणा थी. उसके गुणों से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उसके पास अपना देवदूत भेजा.
“ईश्वर ने मुझे आपके पास यह कहने के लिए भेजा है कि वे आपसे बहुत प्रसन्न हैं और आपको कोई दिव्य शक्ति देना चाहते हैं” – देवदूत ने कहा – “क्या आप लोगों को रोगमुक्त करने की शक्ति प्राप्त करना चाहेंगे?”
“बिलकुल नहीं” – भले आदमी ने कहा – “मैं यह चाहूँगा कि ईश्वर स्वयं इस बात का निर्णय करे कि किसे रोगमुक्त किया जाय”.
“तो फिर आप पापियों को सद्मार्ग पर वापस ले आने की शक्ति ग्रहण कर लें”
“यह तो आप जैसे देवदूतों का काम है. मैं नहीं चाहता कि लोग मसीहा जानकर मेरा सम्मान करें या मुझे ऐसे प्रतिमान के रूप में स्थापित कर दिया जाय.”
“आपने तो मुझे संकट में डाल दिया” – देवदूत ने कहा – “आपको कोई शक्ति दिए बिना मैं स्वर्ग नहीं लौट सकता. यदि आप स्वयं कोई शक्ति नहीं लेना चाहेंगे तो मुझे विवश होकर आपके लिए चयन करना पड़ेगा”.
भले आदमी ने कुछ क्षणों के लिए सोचा, फिर कहा :-
“ठीक है, यदि ऐसा है तो मैं चाहता हूँ कि ईश्वर मुझसे जो भी शुभ कर्म करवाना चाहता है वे स्वतः घटित होते जाएँ परन्तु उनमें मेरा हाथ होने का पता किसी को भी नहीं चले, मुझे भी नहीं, ताकि स्वयं को ऐसी क्षमता से युक्त जानकार मुझमें कभी अहंकार न उपजे”.
“ऐसा ही हो” – देवदूत ने कहा. उसने भले आदमी की परछाईं को रोगमुक्त करने की दिव्य शक्ति से संपन्न कर दिया परन्तु केवल उसी समयकाल के लिए जब उसके चेहरे पर सूर्य की किरणें पड़ रहीं हों. इस प्रकार, वह भला आदमी जहाँ कहीं भी गया वहां लोग रोगमुक्त हो गए, बंजर धरती में फूल खिल उठे, और दुखियों के जीवन में वसंत आ गया.
अपनी दिव्य शक्तियों से अनभिज्ञ वह भला आदमी सालों तक दूरदेशों की यात्रायें करता रहा. उसके पीछे सदैव चल रही उसकी परछाईं ईश्वरीय इच्छा को पूर्ण करती रही. उसे जीवनपर्यंत इसका बोध नहीं हुआ कि वह परमेश्वर के कितना करीब था.
(पाउलो कोएलो के ब्लॉग से)
(A story on goodness of a man – Paolo Coelho – in Hindi)
(~_~)
Many years ago, there lived a man who was capable of loving and forgiving everyone he came across. Because of this, God sent an angel to talk to him.
‘God asked me to come and visit you and tell you that he wishes to reward you for your goodness,’ said the angel. ‘You may have any gift you wish for. Would you like the gift of healing?’
‘Certainly not,’ said the man. ‘I would prefer God to choose those who should be healed.’
‘And what about leading sinners back to the path of Truth?’
‘That’s a job for angels like you. I don’t want to be venerated by anyone or to serve as a permanent example.’
‘Look, I can’t go back to Heaven without having given you a miracle. If you don’t choose, I’ll have to choose one for you.’
The man thought for a moment and then said:
‘All right, I would like good to be done through me, but without anyone noticing, not even me, in case I should commit the sin of vanity.’
So the angel arranged for the man’s shadow to have the power of healing, but only when the sun was shining on the man’s face. In this way, wherever he went, the sick were healed, the earth grew fertile again, and sad people rediscovered happiness.
The man traveled the Earth for many years, oblivious of the miracles he was working because when he was facing the sun, his shadow was always behind him. In this way, he was able to live and die unaware of his own holiness.


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