मानवता का सबक : A Lesson into Hunamnity and Kindness
मैं दिलीप मेनेज़ेस को नहीं जानता. उनके फेसबुक प्रोफाइल से पता चलता है कि वे गोवा में आल्टो पोरवोरिम में रहते हैं और अपनी बाइक पर दूर-दराज़ में घूमना पसंद करते हैं. कुछ दिन पहले आंध्रप्रदेश की ऐसी ही एक यात्रा में वे एक वृद्ध पति-पत्नी से मिले जो अपनी झोपड़ी के सामने चाय बेचकर जीवनयापन करते हैं. गरीब वृद्ध दंपत्ति का दयालुतापूर्ण व्यवहार उनके दिल को छू गया. उन्होंने अपने साथ घटी घटना को फेसबुक पर शेयर किया जो वायरल हो गई. इसे यहां प्रस्तुत करने तक बज़फ़ीड तथा अनेक वेबसाइटों ने शेयर किया है. मानवता में हमारी आस्था को गहरा करनेवाले इस प्रसंग का मैं अनुवाद करके हिंदीज़ेन पर सभी से शेयर कर रहा हूं. मैं आशा करता हूं कि दिलीप इसे अन्यथा नहीं लेंगे.
सुबह-सुबह अपनी बाइक पर नरसीपट्नम से लंबासिंघी जाते समय में एक गांव में नाश्ते के लिए रुका. गांव की सड़क के किनारे बनी एक झोपड़ी के बाहर लगी टेबल पर एक वृद्ध व्यक्ति चाय बना रहा था. मैंने उससे एक कप चाय के साथ कुछ खाने के लिए मांगा. वृद्ध ने मुझे चाय बनाकर दी और अपनी भाषा में कुछ कहा जो मैं समझ न सका. तब मैंने उसे इशारे से कुछ खाने के लिए मांगा. वृद्ध ने पास ही खड़ी अपनी पत्नी की ओर मुड़कर कुछ कहा. वृद्ध पत्नी मे मुझे बाहर पड़ी एक बेंच पर बैठने का इशारा किया और झोपड़ी के भीतर चली गई. कुछ ही समय में वह एक प्लेट में इडली और चटनी लेकर आई, जिसे मैंने चाय के साथ अच्छे से खाया.
खाने के बाद मैंने वृद्ध से पूछा कि मुझे उसे कितने रुपए देने थे और उसने कहा, “5 रुपए”. मुझे पता था कि मैं भारत के एक बहुत पिछड़े भूभाग में था फिर भी वहां एक प्लेट इडली और चाय का मूल्य 5 रुपए नहीं हो सकता था. मैंने इशारे से उन्हें अपनी हैरत जताई जिसपर वृद्ध ने केवल चाय के कप की ओर इशारा किया. जब मैंने इडली की खाली प्लेट की ओर इशारा किया तो उसकी पत्नी ने कुछ कहा जो मैं फिर से नहीं समझ सका. शायद वे मुझसे सिर्फ चाय का ही पैसा ले रहे थे.
मैंने विरोधस्वरूप फिर से खाली प्लेट की ओर इशारा किया और वे दोनों मुस्कुराने लगे. मुझे उसी क्षण यह समझ में आया कि वे केवल चाय बेचते थे और मेरे कुछ खाने का मांगने पर उन्होंने अपने नाश्ते में से मुझे खाने के लिए दिया, अर्थात उस दिन मेरी वजह से उनका खाना कम पड़ गया.
मैं वहां चुपचाप खड़ा कुछ मिनटों के भीतर घटी बातों को अपने मष्तिष्क में उमड़ता-घुमड़ता देखता रहा. फिर मैंने अपने वालेट से कुछ रुपए निकलकर वृद्ध को देना चाहा जो उसने स्वीकार नहीं किए. बहुत अनुनय-विनय और ज़िद करने पर ही मैं उसे कुछ रूपए दे पाया.
लंबासिंघी के घाट से गुज़रते समय मेरे मन में बार-बार उन वृद्ध दंपत्ति और उनके दयालुतापूर्ण व्यवहार की स्मृति तैरती रही. मैंने यकीनन उस दिन जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण पाठ ग्रहण किया. स्वयं अभावग्रस्त होने पर भी दूसरों की इस सीमा तक सहायता करने का गुण विरलों में ही होता है.
अपडेट (02-02-2016) – मेरी पोस्ट के सोशल मीडिया पर वायरल हो जाने के बाद कई लोगों में मुझसे इन वृद्ध दंपत्ति का पता पूछा ताकि वे भी उनसे मिल सकें. उनका गूगल लोकेशन मैप यह है. https://goo.gl/maps/vkeNdXj3Ze52
यदि आप उनसे मिलें तो उन्हें बताएं कि बड़ी सी सफेद मोटरसाइकल पर गोवा से आनेवाले लंबे कद के दाढ़ीवाले युवक ने उन्हें “नमस्ते” कहा है.
(दिलीप मेनेज़ेस की वेबसाइट http://www.deelipmenezes.com/)
I do not know Deelip Menezes. His Facebook profiles tells that he lives in Alto Porvorim in Goa and likes to roam long distances on his two-wheeled mean machines. A few days back he came across a poor tear-seller couple living in a roadside hut. The most humane and kind-hearted gesture of the old souls touched his heart and he shared the anecdote in his post which soon went viral. I’m sharing the same here for an inspiring read and hope it brightens our spirits and rekindles our faith in humanity.
While riding early morning from Narsipatnam to Lambasingi I stopped at a village for breakfast. There was a table set out outside a hut along the village road and an old man was making tea. I asked for a cup of tea and something to eat. The old man pointed to the tea and then said something in his local language that I didn’t understand. I made the sign for food and he turned to his wife who was standing close by. She pointed me to a bench outside their hut, asked me to sit down and went inside the hut. After a few moments she emerged with a place of idlis and chutney which I enjoyed along with the tea.
After I was done I asked the old man how much I owed him and he replied with “5 rupees”. I knew I was in one of the most backward areas of India, but 5 bucks seemed too less for a plateful of idlis with chutney and a tea. I showed my astonishment using sign language and the old man pointed to the tea once again. I pointed to the empty plate of idlis and his wife said something which I again didn’t understand. But it seemed that they were charging me only for the tea.
I protested and pointed to the plate once again and they both smiled at me. That was the moment I realised that theirs was merely a tea stall and they had given me some of their own breakfast, which meant there would be less for their family to eat that morning.
I stayed quiet for a moment as I wrapped my head around what had just happened. I then reached into my wallet, took out some money and handed it to the old man. He refused to take it, but I insisted and after some pleading he finally gave in.
As I rode up the ghat to Lambasingi I couldn’t stop thinking about the old couple and the life lesson I learned from them. You haven’t truly given until you have given till it hurts.
Update (2-Feb-2016) – This post seems to have gone viral on social media and many have asked me for the location of this hut so that they can stop by and meet the couple. Here is the location on a Google Map. https://goo.gl/maps/vkeNdXj3Ze52
If you happen to visit this place, please tell the old couple that the tall bearded guy from Goa with the big white motorcycle said “Hi”.
Deelip Menezes’s website http://www.deelipmenezes.com/)
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