क्या आप अपने बच्चों को इस तरह बड़ा करना पसंद करेगे
आज के दौर में टीवी और स्मार्टफ़ोन वगैरह के बिना रहने की लोग सोच भी नहीं पाते. हमारे देश में तो ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाली एक बड़ी आबादी अभी भी इनसे वंचित है लेकिन शहरी संपन्न लोगों के घरों में तो लगभग हर कमरे में टीवी और सबके पास एक से ज्यादा गैजेट का होना अब आम बात है. अब हमारे बच्चे इन गैजेट्स के इतने लती हो चुके हैं कि उनकी गैरमौजदगी उन्हें बैचैन कर देती है. आपको किसी किशोरवय व्यक्ति का एक दिन बरबाद करना हो या उसे रोने पर मजबूर कर देना हो तो बस उसका फ़ोन स्विच-ऑफ़ करके कहीं छुपा दीजिए… फिर देखिए क्या होता है. फ़ोन्स हमारे दौर के बच्चों की आइडेंटिटी और उनकी लाइफ़ का एक्सटेंशन बन गए हैं.
न्यूज़ीलैंड के एक अंचल में रहनेवाली फ़ोटोग्राफ़र निकी बून (Niki Boon) गांव में रहते हुए भी यह सुविधाएं जुटा सकती थीं लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को टीवी और गैजेट्स की अनुपस्थिति में पलने-बढ़ने का अवसर दिया. उनके बच्चे घरों में कैद होकर टीवी स्क्रीन को अपलक निहारते रहने की बजाए खेतों में खेलते हैं, पेड़ो पर चढ़ते-उतरते हैं और हर वह शरारत करते हैं जो 30-40 साल पहले के बच्चे किया करते थे. यह बात भी मा.ने रखती है कि निकी की 10 एकड़ की प्रॉपर्टी में झाड़ियां, छोटे टीले और करीब से गुजरती नदियां हैं और बच्चे घर में ही स्कूलिंग कर रहे हैं. ऐसी लाइफ़स्टाइल बहुतों के लिए कठिन भी है और अबूझ भी. क्या आप साधन व सुविधासंपन्न होने पर भी अपने बच्चों को इस तरह बड़ा करना पसंद करेंगे?
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