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Wednesday, 23 November 2016

गरीब छात्रों को IIT तक पहुँचाने वाले Super 30 फाउंडर आनंद कुमार की दास्तान

गरीब छात्रों को IIT तक पहुँचाने वाले Super 30 फाउंडर आनंद कुमार की दास्तान

आप में से ज्यादातर लोगों ने life में कभी न कभी कोई coaching classes ज़रूर attend की होगी। और कुछ ने IIT और अन्य engineering colleges के लिए भी तैयारी की होगी। आप लकी थे कि आपके parents coaching की भारी भरकम fees afford कर पाए, लेकिन भारत में ऐसे करोड़ों बच्चे हैं जिनके माता-पिता अपने बच्चों को कोचिंग में नहीं भेज पाते। और ऐसे ही कुछ प्रतिभाशाली बच्चों के लिए बिहार का एक शख्श अँधेरे में रौशनी की किरण का काम करता है।
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं Super 30 के संस्थापक आनन्द कुमार जी के बारे में जो बिना एक पैसे शुल्क लिए गरीब प्रतिभाशाली बच्चों का IIT जाने का सपना साकार करते हैं। आइये जानते हैं उनकी कहानी।
Anand Kumar Super 30 Success Story in Hindi आनंद कुमार सुपर 30

Super 30 के founder आनन्द कुमार जी की सक्सेस स्टोरी

Supr 30 Founder Anand Kumar Biography in Hindi

क्या है Super 30?

Super 30 आनंद जी का स्टार्ट किया हुआ एक प्रोग्राम है जिसके अंतर्गत वे हर साल पूरे बिहार* से ३० ऐसे बच्चों को चुनते हैं जो प्रतिभाशाली हैं पर साथ ही इतने गरीब हैं कि उनके माता-पिता उनको ठीक से पढ़ा-लिखा नहीं सकते। आनंद जी एक परीक्षा के माध्यम से ऐसे बच्चों का चयन कर अपने साथ रखते हैं और उनकी पढाई-लिखाई से लेकर खाना-पीना रहना…हर एक चीज का खर्च खुद उठाते हैं।
इस काम में उन्हें अपने छोटे भाई Pranav और अपनी माँ जयंती देवी, जो बच्चों के लिए खाना बनाती हैं, से मदद मिलती है। गणित विषय आनंद जी खुद ही पढ़ाते हैं जबकि फिजिक्स और केमिस्ट्री पढ़ाने के लिए उन्हें पुराने छात्रों से मदद मिल जाती है।
पटना में 2002 में शुरू हुए इस प्रोग्राम के अंतर्गत हर साल 28-30 बच्चे IIT में चयनित होते हैं। IIT में प्रवेश पाना कितना कठिन है ये हम सब जानते हैं बावजूद इसके हर साल लगभग 100% रिजल्ट देना सचमुच किसी चमत्कार से कम नहीं है और अब तो पूरी दुनिया भी इस चमत्कार को  acknowledge करती है।
Time Magazine ने आनंद कुमार जी की Super 30 classes को Asia के best school की list में शामिल किया है और Discovery channel भी उनके इस unique initiative पर documentary बना चुकी है।
*अब वे अन्य राज्यों से भी बच्चों को लेने लगे हैं और साथ ही उनकी 30 से अधिक छात्रों को लेने की मंशा है।

आनंद कुमार का छात्र जीवन और संघर्ष 

Super 30 के संस्थापक आनंद कुमार जी का बचपन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा । इनका जन्म 1 January 1973 को पटना में हुआ था। इनके पिता डाक विभाग में क्लर्क थे । पिता की तनख्वाह में घर का खर्च किसी तरह से तो चल जा रहा था लेकिन इतनी income नहीं थी कि आनन्द का एडमिशन किसी अच्छे स्कूल में करा सके ।
इनकी स्कूली शिक्षा की शुरुआत सरकारी स्कूल से हुई । Talent के धनी आनन्द जी का मनपसन्द subject Math था । लेकिन इनका talent आर्थिक तंगी के बोझ तले दब जा रहा था । पिताजी की मृत्यु के बाद घर चलाने के लिए माताजी पापड़ बनाती और आनंद साइकल पर सवार हो झोले में पापड़ रख जगह-जगह पहुंचाने और बेचने का काम करने लगे। कई बार जब पापड़ नहीं बिकते तो परिवार के पास खाने के भी पैसे नहीं हो पाते और सभी को भूखे पेट सोना पड़ता।
जब एक बार उनसे “गरीबी” के बारे में बताने के लिए कहा गया तो वे बोले-
गरीबी कोई बताने की चीज नहीं है ये महसूस करने की चीज है…अगर गरीबी को महसूस करना है तो एक-दो दिन भूखे रह कर देखो….
आनंद चाहते तो पिताजी की मृत्यु के बाद उनकी जगह पर उन्हें सरकारी नौकरी मिल सकती थी…पर बचपन से ही Maths teacher बनने का सपना देखने वाले आनंद ने सोचा कि अगर वे इस चक्कर में पड़े तो कभी भी उनका सपना पूरा नहीं हो पायेगा और उन्होंने नौकरी नहीं की।
आनंद जी अपने रास्ते में आये काटे को भी काटा नहीं फूल समझे और उनकी यही विशेषता उनका संबल बनता गया । अपने इसी संबल की वजह से 1994 में इन्हें Cambridge University में जाने का मौका मिला पर गरीबी के कारण उनका ये सपना टूट गया।
इसके बावजूद आनन्द जी ने हार नहीं मानी, वे दिन के समय Mathematics पर काम करते थे और शाम के समय अपनी माँ के पापड़ बेचने के व्यवसाय में मदद करते थे । इसके अलावा अपने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए Tuition भी पढ़ाते थे । उस समय Patna University में Maths के foreign journals उपलब्ध नहीं थे इसलिए आनन्द जी सप्ताह के अंत में 6 घंटे का ट्रेन द्वारा सफर करके वाराणसी जाते थे और BHU की Central Library में Maths के foreign journals पढ़ते थे और सोमवार सुबह पटना लौट जाते थे ।

पढ़ाने की शुरुआत

1992 में आनन्द जी Mathematics की कोचिंग शुरू की और अपने institute का नाम रखा Ramanujan School of Mathematics. उनके पढ़ाने का style और विषय पर पकड़ इतनी अच्छी थी कि कुछ ही समय के अंदर उनकी ख्याति दूर दूर तक फ़ैल गयी। कुछ छात्रों से शुरू हुई coaching बढ़ते बढ़ते 500 छात्रों तक पहुँच गयी।

Super 30 की शुरुआत और उसके पीछे की प्रेरणा

आनंद जी स्वयं एक प्रतिभाशाली छात्र थे औ इसी के बल पर उनका चयन दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित Universities में से एक Cambridge University में हो गया था। पर गरीबी के कारण वे खुद वहां जाने का खर्च नहीं उठा सकते थे और समाज से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिली…बचपन से गरीबी का दर्द झेल रहे आनंद ने मन ही मन फैसला किया कि वे ऐसे ज़रुरत मंद बच्चों के लिए ज़रूर कुछ करेंगे। और आगे चल कर जब आनंद जी ” Ramanujan School of Mathematics” नाम से एक ट्यूशन सेंटर चला रहे थे तब एक दिन बिहार शरीफ का एक छात्र उनके पास आया और बोला कि,” मेरे पास पैसे नहीं हैं क्या मैं आपसे पढ़ सकता हूँ…मैं बाद में जब बाउजी खेत से आलू उखाड़ेंगे तब पैसे दे दूंगा….”
बच्चे की ये बात आनंद जी के दिल को छू गयी और उसी पल उन्होंने Super 30 की शुरुआत करने का फैसला किया।
 आनन्द जी का मानना है कि-
पढाई – लिखाई का लाभ हम अकेले ही उठाते रहे और दूसरों का उससे कुछ भला न हो तो ऐसी पढाई – लिखाई किस काम की । शिक्षा की उपयोगिता तभी है जब उसका अधिक से अधिक लाभ दूसरों को मिले ।

कैसे उठाते हैं बच्चों के रहने, खाने-पीने इत्यादि का खर्च?

आनंद और उनकी टीम कभी भी Super 30 के लिए कोई donation नहीं लेती बल्कि वे normal tuition classes से होने वाली कमाई को ही इन ज़रुरतमंद बच्चों की आवश्यकताएं पूरी करने में लगाती है।

Free कोचिंग का विरोध!

शायद आप सोचें कि भला कोई इसका विरोध क्यों करेगा….लेकिन आनंद कुमार जी जहाँ एक तरफ फ्री में बच्चों को IIT में प्रवेश दिला रहे थे वहीँ महंगी-महंगी कोचिंग वाले इतने पैसे लेकर भी अच्छा रिजल्ट नहीं दे पा रहे थे। इसलिए पहले आनंद जी को ये सब बंद करने की धमकी मिली और नहीं मानने पर उन पर जानलेवा हमला भी हुआ। पर फिर भी वो वही करते रहे जो वो करना चाहते थे, सचमुच उनके जज्बे और हिम्मत की दाद देनी होगी।

इस कामयाबी का श्रेय किसे देते हैं?

सभी को..पूरी टीम को…खासतौर से इन बच्चों को जो रोज 16-16 घंटे पढाई करते हैं।

Bollywood से सम्बन्ध

Anand Kumar Super 30 Success Story in Hindi आनंद कुमार सुपर 30
Mr. Anand with Mr. Bachchan
Prakash Jha आनंद जी के जीवन पर एक फिल्म बनाना चाहते थे लेकिन लक्ष्य सी भटकने के डर से आनंद जी ने ऐसे किसी प्रोजेक्ट के लिए मना कर दिया। हालांकि, उन्होंने “आरक्षण” फिल्म में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को उनका रोल तैयार करने में मदद की थी।

सरकार से अपील

IITJEE प्रवेश परीक्षा का लेवल बहुत कठिन होता है जिसके लिए कई बार कोचिंग जाना मजबूरी बन जाती है और गरीब छात्र यहाँ मात खा जाते हैं। इसलिए इस परीक्षा का level क्लास 12th के हिसाब से होना चाहिए और स्टूडेंट्स को कम से कम ३ मौके मिलने चाहिए.

जीवन का लक्ष्य

कभी किसी पढने वाले बच्चे की पैसों के चलते पढाई न रुके।

छात्रों और युवाओं के लिए सन्देश

मेहनत करो…निराश मत हो…हमेशा ये सोचो कि लाइफ में अन्धकार आता है…तकलीफें आती हैं…ये part of life है। अँधेरा जितना गहरा होता है…खुश हो कि नयी सुबह उतनी ही करीब है….बस शर्त इतनी है कि “मेहनत करो” मेहनत करोगे तो एक न एक दिन तुम्हारे जीवन में  प्रकाश ज़रूर आएगा।
“बुझी हुई शमा फिर से जल सकती है
भयंकर तूफ़ान से भी कश्ती निकल सकती है
निराश न हो दोस्तों….एक दिन अपनी भी किस्मत बदल सकती है।
अधिक जानकारी के लिए सुपर ३० की साईट देखें या Wikipedia पर उनके बारे में पढ़ें. आप YouTube पे उनका इंटरव्यू भी देख सकते हैं.
Thank You
Babita Singh
Jointly written by Babita Singh from KhayalRakhe.Com & Gopal Mishra
बबीता जी by profession एक टीचर हैं और साथ ही वे एक NGO से जुड़कर  women empowerment के लिए काम करती हैं. अपने ब्लॉग के माध्यम से वे महिलाओं से जुड़ी स्वास्थय समस्याओं के बारे में लोगों को aware करना चाहती हैं।

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Saturday, 12 November 2016

विश्वासघात पर हिंदी कहानी

Hindi Story on Betrayal

विश्वासघात पर हिंदी कहानी

“मॉम .!!… “मैं सोच रही थी! कि आज रात को मैं शिखा के घर पर ही रुक जाऊंगी…थोडी़ कम्बाइन्ड स्टडी करनी है, वो परसों मैथ्स का टेस्ट है ना उसी की तैयारी करनी है”। किताबें समेंटते हुए चारू बोलती जा रही थी!
Hindi Story on Betrayal विश्वासघात हिंदी कहानी“पर बेटा ..रात को ..किसी के घर रुकना मुझे तो ठीक नहीं लगता।”
“मॉम!!”, नाराज होती हुई चारू ने कहा,  “देखो ना पापा मां जाने नहीं दे रहीं।।
पापा माँ पर नाराज़ होते हुए बोले, “अरे रुक जाने दो ना चारू को उसकी सहेली के घर, एक रात की ही तो बात है। अपने बच्चों पर विश्वास करना सीखो!, जाओ बेटा”! जाओ!”
चारू ने पापा को थैंक्स कहा और अपनी स्कूटी से निकल गयी।
रात का एक बजा था, फोन की घनघनाहट सुन कर वर्मा जी घबरा कर उठे, फोन पर आवाज आयी, “मि. वर्मा आप तुरन्त थाना गांधी नगर आने का कष्ट करें।”
यह सुनकर वर्मा जी की सांसें गले में अटक गयीं, डर रहे थे की कहीं कोई अनहोनी ना हुई हो…कहीं बेटी को तो कुछ……. बदहवास थाने पहुंचे,देखा दस-पंद्रह लड़के लड़कियां मुंह छिपाये बैठे थे उनमें अपनी चारू को पहचानने में जरा भी देर नहीं लगी।
“देखिये वर्मा जी!!! ये बच्चे दिल्ली के बाहर एक फार्म हाउस में ड्रग्स के साथ रेव पार्टी करते हुए पकडे़ गये हैं!
आप लोग ना जाने अपने बच्चों को कैसे संस्कार देते हैं….ना जाने इतनी रात गए घर से बाहर निकलने की परमिशन कैसे दे देते हैं आप लोग….शर्म आनी चाहिए!
वर्मा जी शर्म का सिर शर्म से झुका जा रहा था, वो बस एक ही बात सोच रहे थे….जब उन्होंने अपनी बेटी पर इतना विश्वास किया तो आखिर क्यों उनकी बेटी ने उनके साथ विश्वासघात कर दिया!
दोस्तों, इस दुनिया में कोई है जो आपका सबसे अधिक ध्यान रखता है, सबसे अधिक आपका भला चाहता है…. तो वो आपके parents हैं। वो आपको ऊपर से सख्त लग सकते हैं पर उनके भीतर आपके लिए आपार प्रेम होता है और कभी भी आपको उस प्रेम का नाजायज़ फायदा नहीं उठाना चाहिए…कभी भी आपको उनके विश्वास के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए!
sunita-tyagi
धन्यवाद! 
सुनीता त्यागी
पता: जागृतिविहार मेरठ
शिक्षा: परास्नातक
उपलब्धि: राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लघुकथाओं का प्रकाशन।
We are grateful to Sunita Ji for sharing this Hindi Story on Betrayal ( विश्वासघात पर कहानी ). Thanks Ma’am

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Sunday, 31 July 2016

क्या था डॉ. ऐ पी जे अब्दुल कलाम के जीवन का सबसे बड़ा अफ़सोस?


क्या था डॉ. ऐ पी जे अब्दुल कलाम के जीवन का सबसे बड़ा अफ़सोस?


Dr. A P J Abdul Kalam Anecdote in Hindi डॉ. ऐ पी जे अब्दुल कलामअगर आपको अंदाजा लगाने को कहा जाए कि बताइए डॉ. ऐ पी जे अब्दुल कलाम की ज़िन्दगी का सबसे बड़ा अफ़सोस क्या रहा होगा तो आप क्या बोलेंगे?
जब मेरे मन में ये सवाल आया तो मुझे लगा कि उनका सबसे बड़ा अफ़सोस शायद किसी innovation को लेकर रहा
होगा, वो कोई बड़ा आविष्कार करना चाहते होंगे, may be कोई missile या कोई ख़ास तरह का राकेट… पर कर नहीं पाए होंगे और यही उनका सबसे बड़ा regret होगा!
And I think और भी बहुत से लोग इस सवाल के जवाब में ऐसा ही कुछ सोचेंगे । लेकिन जब आप इस प्रश्न पर डॉ कलाम का उत्तर सुनेंगे तो मेरी तरह आप भी थोड़ा surprise होंगे और साथ ही महसूस कर पायेंगे कि सचमुच डॉ कलाम कितनी बड़ी और कितनी महान सख्शियत थे। तो आइये जानते हैं:

क्या था डॉ कलाम के जीवन का सबसे बड़ा अफ़सोस ? / Dr. A P J Abdul Kalam Anecdote in Hindi

एक बार डॉ. ऐ पी जे अब्दुल कलाम मुंबई के किसी कॉलेज की एनुअल सेरेमनी में गए हुए थे। वहां एक 20 साल के युवक ने डॉ. कलाम से पूछा, “ सर, आपको इतनी सफलताएं मिली हैं। निश्चित रूप से आप कभी-कभार असफल भी हुए होंगे। आप हमेशा कहते हैं कि आपने असफलताओं से सीखकर सफलता प्राप्त की है। मैं कुछ जानना चाहता हूँ: क्या कुछ ऐसा है जो आप नहीं कर पाए, और अभी भी आपको अफ़सोस होता है कि आप वो चीज नहीं कर पाए?”
डॉ. कलाम कुछ देर सोचने के बाद बोले, “ आप जानते हैं, घर पे मेरे एक बड़े भाई है जो अब 98 साल के हैं। वे धीमे-धीमे चल पाते है, बिना किसी का सहारा लिए। उनके विज़न में कुछ प्रॉब्लम है और इस वजह से हमे घर में हेमशा पर्याप्त रौशनी रखनी पड़ती है, खासतौर पे रात में।



अब देखिये, रामेश्वरम में कभी-कभी बिजली चली जाती है, इसलिए  उनका इधर-उधर जाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए पिछले साल मैंने घर पे अच्छी बैटरी वाला एक रूफ टॉप सोलर पैनल लगवा दिया। जब सूरज निकलता है तब पैनल पॉवर देता है, और रात में बैटरी पॉवर सप्लाई करने का काम करती है। अब हर समय पर्याप्त पॉवर रहती है। मेरा भाई खुश है।
जब मैं अपने भाई को खुश देखता हूँ तो मैं भी अच्छा महसूस करता हूँ। लेकिन साथ ही मुझे अपने पेरेंट्स की भी याद आ जाती है। दोनों लगभग सौ साल तक जिए , और अपने आखिरी सालों में उन्हें भी देखने में कठिनाई होती थी। तीन दशक पहले बिजली ज्यादा कटती थी। तब मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पाया। तब कोई सोलर पॉवर नहीं था। ये बात कि मैं उनकी तकलीफ दूर करने के लिए कुछ नहीं कर पाया मेरा सबसे बड़ा अफ़सोस है, कुछ ऐसा जो हमेशा मेरे साथ रहेगा।”
दोस्तों, डॉ कलाम की ये बात कितनी सरल और दिल छू लेने वाली है। इतना बड़ा वैज्ञानिक, भारत रत्न, देश का राष्ट्रपति… पर कितना सीधा, सरल और down to Earth…सचमुच उनका जीवन प्रेरणा का आपार स्रोत है।
एक तरफ जहाँ अपने माता-पिता की आँखों की समस्या के लिए कुछ ख़ास न कर पाना डॉ कलाम के जीवन का सबसे बड़ा अफ़सोस था वहीँ दूसरी तरफ आज करोड़ों युवा अपनी life में इतने busy हो गए हैं कि माता-पिता का ध्यान रखना तो दूर उनके पास उनसे बात तक करने का समय नहीं है!
हमें सोचना चाहिए कि कहीं हम ऐसे लोगों में से तो नहीं हैं जो रोजी रोटी और अपनी nuclear family की needs पूरा करने में इतना खो गए हैं कि महीनो-महीनो अपने पेरेंट्स से बात ही नहीं करते?
हमें सोचना चाहिए कि कहीं हम ऐसे लोगों में तो नहीं हैं जो ये जानते हुए भी कि माता-पिता तकलीफ में हैं पर फिर भी उनके लिए कुछ नहीं करते?
यदि हाँ, तो हमें डॉ कलाम से सीख लेनी चाहिए और हमे जन्म देने वाले, हज़ारों तकलीफें उठा कर हमें पाल-पोश कर बड़ा करने वाले अपने माता-पिता के लिए ज़रूर समय निकालना चाहिए और उनका ध्यान रखना चाहिए!
नहीं तो जीवन के अंत में हमें अपने पेरेंट्स का केयर न कर पाने का अफ़सोस हो न हो पर शायद हम सबको बनाने वाले ईश्वर को ज़रूर अफ़सोस होगा कि मैंने ये इंसान भी क्या चीज बना दी!

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Wednesday, 13 July 2016

लियोनार्दो दा विंची का अभिशाप


लियोनार्दो दा विंची का अभिशाप

Bantock... da Vinci

आप लियोनार्दो दा विंची के बारे में जानते हैं. विश्वप्रसिद्ध मोनालिसा पेंटिग बनाने वाला वह कलाकार मध्ययुग का विलक्षण जीनियस व्यक्ति था. वह चित्रकार, मूर्तिकार, आर्कीटेक्ट, शरीर रचना विज्ञानी, डिज़ाइनर, और इंजीनियर था. उसकी विशेषज्ञता कला और विज्ञान के किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं थी, और उसके युग में ऐसा होना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी. दा विंची के अनेक समकालीन कई-कई क्षेत्रों में महारत रखते थे. महान चित्रकार माइकलएंजेलों भी इसी प्रकार का जीनियस था.
लेकिन आज हालात बहुत बदल गए हैं. आधुनिक समाज में दा विंची जैसे व्यक्तियों की कुछ खास पूछ-परख नहीं है. उस जैसी असाधारण प्रतिभा रखनेवाले व्यक्ति अब किसी एक क्षेत्र में पूरी तरह मास्टरी हासिल नहीं कर पाते और ज्ञान-विज्ञान केंद्रित हमारे अतिजटिल समाज में वे औसत प्रतिभाशाली व्यक्तियों से पिछड़ जाते हैं.
ऐसा क्यों होता है और दा विंची जैसे व्यक्तियों को इस समस्या से निकलने के उपाय मैं इस लेख में बताऊंगा. इससे आपको यह समझने में मदद मिलेगी कि क्यों कुछ लोग (जैसे मैं और शायद आप भी) किसी एक विषय या फ़ील्ड में मास्टरी हासिल नहीं कर पाते. इस पोस्ट में मुख्यतः इन बिंदुओं पर चर्चा की जाएगीः
  • क्यों किसी भी फ़ील्ड में कंपिटीशन अधिक होने पर हमारा हौसला पस्त पड़ने लगता है,
  • वे कौन सी एक्टीविटीज़ हैं जो दा विंची के अभिशाप से हमें मुक्त कर सकती हैं, और,
  • गाय, श्वान, और तारा एक्टीविटीज़ में क्या अंतर है।

मल्टी-टैलेंट्ड लोग स्पेशलाइजेशन पर केंद्रित वैश्विक व्यवस्था में अलग-थलग क्यों पड़ जाते हैं?

कुछ डॉक्टर केवल स्पाइनल सर्जरी करते हैं, कुछ मानसिक चिकित्सक महिलाओं के शिज़ोफ़्रेनिया के एक्सपर्ट होते हैं, और कुछ भौतिकविज्ञानी सिर्फ क्वांटम फ़िज़िक्स का ही अध्ययन करते हैं. हमारे समाज में किसी भी विषय की एक फ़ील्ड पर विशेषज्ञता रखनेवाले व्यक्तियों का महत्व और उनकी मांग बढ़ती जा रही है, और इसका बहुत अच्छा कारण है.
ऐसा इसलिए है कि सोलहवीं शताब्दी में दा विंची के काल से ही ज्ञान-विज्ञान का लगातार विस्तार होता जा रहा है. जैसे-जैसे सभी विषयों में जानकारियां और जटिलताएं बढ़ती जा रही हैं वैसे-वैसे उनके अलग-अलग टॉपिक्स पर विशेषज्ञता रखनेवालों का महत्व भी बढ़ रहा है.
स्पानल सर्जन का उदाहरण लेते हैं. स्पाइन से जुड़ी सर्जरी इतनी जटिल और कठिन हो गई है कि अब ऐसे सर्जनों की ज़रूरत पड़ती है जिन्होंने वर्षों तक इससे जुड़े मामलों का ही अध्ययन किया हो, ताकि उनसे किसी भी केस में छोटी-से-छोटी गलती भी न हो सके.
इसका अर्थ यह है कि जिस सर्जन को स्पानल सर्जरी की फ़ील्ड में अपना कैरियर बनाना है वह किसी वाद्य यंत्र को सीखने में या दुनिया भर के बेहतरीन व्यंजन खुद बनाकर खाने के शौक को समय नहीं दे पाएगा. उसे इन दो या तीन चीजों में से एक का ही चुनाव करना होगा क्योंकि तीनों एक्टीविटीज़ बहुत समय मांगती हैं. यदि आप एक बहुत जटिल स्किल डेवलप करना चाहते हैं तो आपको खुद को किसी एक फ़ील्ड में ही समर्पित करना होगा.
मल्टी-टैलेंटेड लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या यही है. उन्हें इससे ही संघर्ष करना है.
मल्टी-टैलेंटेड व्यक्तियों के भीतर उनके हर टैलेंट को साकार करने की इच्छा बहुत तीव्र होती है लेकिन वे इस बात को भली-भांति जानते हैं कि उन्हें इसके लिए पर्याप्त समय नहीं मिलेगा. ऐसे लोग बहुत उत्सुक स्वभाव के होते हैं और  उनकी उत्सुकता उन्हें एक से दूसरे विषय पर भटकाती रहती है, जिसके परिणामस्वरूप वे एक बिंदु पर महारत हासिल करने के लिए ज़रूरी परिश्रम नहीं कर पाते. किसी नई फ़ील्ड की जानकारी मिलने पर वे उत्साह से भर जाते हैं और उसमें गोता लगा देते हैं लेकिन उसके बेसिक्स को सीखने-समझने के दौरान ही उनकी दृष्टि किसी और फ़ील्ड पर पड़ती है और पहली फ़ील्ड में उनकी रूचि और आकर्षण कम पड़ जाता है.
इसे मैं अपने ही उदाहरण से समझाता हूं. किशोरावस्था में मेरी रुचि शास्त्रीय संगीत में जगी और मैंने वायलिन सीखना शुरु कर दिया. कुछ महीनों के भीतर ही मेरा उत्साह कम होने लगा. मैंने वायलिन क्लास जाना बंद कर दिया और मैं किसी दूसरी एक्टीविटी में उलझ गया.

दा विंची व्यक्तित्व के लोग कंपीटीशन से घबराते हैं और उस फ़ील्ड की खोज करते रहते हैं जहां वे अकेले टिके रह सकें.

सधी हुई दृष्टि होने पर जीवन को उसका उद्देश्य मिल जाता है लेकिन दा विंची व्यक्तियों में इस टेंडेंसी का अभाव होता है. वे बार-बार अपनी दिशा बदलते हैं, वे नित-नए शौक पालते रहते हैं और किसी भी नौकरी में टिक नहीं पाते.
क्यों?
क्योंकि वे कंपीटिशन से डरते हैं.
बहुत से लोगों के लिए स्वस्थ कंपीटिशन का होना उनकी स्किल्स को निखारने और उभारने में सहायक होता है, लेकिन दा विंची व्यक्तियों के साथ ऐसा नहीं होता.
किसी भी क्षेत्र में कंपीटिशन होने पर दा विंची व्यक्ति ठीक उसी समय उस फ़ील्ड को छोड़ देते हैं जब चीजें रोचक लगने लगती हैं और उनका हाथ जमने लगता है. वे किसी दूसरे शौक या स्किल पर हाथ आजमाने लगते हैं – और थोड़ा-बहुत सीख जाने पर उनके मन में यह विश्वास घर कर जाता है कि वे उसे फिर कभी पूरी तरह सीख लेंगे… लेकिन वे उसे भी अधूरा छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं.
उदारहण के लिए, यदि वे टेनिस सीखना शुरु करते हैं तो उस सीमा तक प्रेक्टिस करते हैं जब उनका मन यह कहने लगता है कि “यह तो कोई खास मुश्किल नहीं है  – मैं तो जब चाहूं तब बढ़िया टेनिस प्लेयर बन सकता हूं”. इस पॉइंट पर फ़ील्ड को छोड़ देने पर उनके मन में किसी अच्छे प्लेयर को चैलेंज किए बिना ही जीत जाने जैसी गर्वीली अनुभूति बनी रहती है.
इसके साथ ही दा विंची व्यक्ति  आलोचना से भी घबराते हैं. वे इस तथ्य को नहीं समझना चाहते कि हर मास्टर को स्टूडेंट के स्तर से ही शुरुआत करनी पड़ती है. वे फ़ीडबैक को बाधा की तरह लेते हैं. किसी भी काम में जब जटिलता बढ़ जाती है या कठिनाई आने लगती है तब वे उसे पार करके अगले लेवल तक जाने की बजाए अक्सर फ़ील्ड ही चेंज कर देते हैं.
इस प्रकार की दिशाहीनता से दा विंची व्यक्तियों में निराशा जन्म लेने लगती है.
किसी भी एक फ़ील्ड के प्रति समर्पित हो सकने की यह अक्षमता उन्हें कई फ़ील्ड्स की सतही जानकारी होने तक सीमित कर देती है. वे बहुत सी फ़ील्ड्स की औसत जानकारी ही रख पाते हैं फिर भी अपने मन को यह कहकर दिलासा देते हैं कि वे “Jacks of all trades, masters of none” हैं.
इस तरह कई साल तक एक से दूसरी फ़ील्ड पर उछलते-कूदते रहने पर उन्हें यह अहसास होने लगता है कि उन्होंने अपना वक्त बर्बाद कर दिया है. उन्होंने अनेक फ़ील्ड्स की मामूली जानकारियां तो जुटा लीं लेकिन वे किसी भी विषय की गहराई में नहीं गए. इससे भी बुरी बात यह है कि वे यह कभी जान ही नहीं पाए कि उनकी योग्यता किस क्षेत्र में थी. प्रौढ़ावस्था तक पहुचते-पहुंचते उनकी निराशा गहराने लगती है क्योंकि वे यह जान जाते हैं कि उनके पास अब बहुत अधिक समय नहीं बचा, और वे अभी भी अपने तमाम तरह के टैलेंट को व्यर्थ होते देखते रहते हैं.

दा विंची के अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए ऐसी एक्टीविटी खोजिए जो आपके अधिक-से-अधिक टैलेंट को समाहित करती हो.

यदि आप भी मेरी तरह हैं और खुद को दा विंची समुदाय से जुड़ा महसूस करते हैं तो इस समस्या का समाधान आप कैसे करेंगे? दा विंची  के अभिशाप से मुक्ति कैसे मिलेगी?
इसके लिए आपको सिर्फ इतना करना है कि आप पर्याप्त रूप से जटिल कोई ऐसी एक्टीविटी खोजें जिसमें आपके अधिक-से-अधिक टैलेंट्स शामिल किए जा सकें.
दा विंची व्यक्तियों की पर्सनालिटी जटिल होती है और जटिलता भरी चीजें या टास्क ही उन्हें संतुष्ट करते हैं. यदि उस टास्क में ऐसी बातें नहीं हैं जो उनके अलग-अलग टैलेंट्स से जुड़ी हों तो उनका ध्यान भटकने लगेगा और वे उस टास्क में रुचि नहीं लेंगे.
मैं इसे अपने उदाहरण से समझाता हूं. मैं एक टिपिकल दा विंची व्यक्तित्व हूं और मैंने सैंकड़ों तरह की चीजें आजमाकर देखी हैं. मैंने टीचिंग, पत्रकारिता, मार्केटिंग, फ्रीलांसिग और पब्लिक सेक्टर में नौकरी करने से लेकर तमाम तरह की हॉबीज़ और इंट्रेस्ट पाले – लेकिन मैं कभी भी यह नहीं जान पाया कि वह कौन सा एकमात्र कार्य था जो मुझे करते रहना चाहिए था.
एक दिन मैंने बैठे-ठाले सर्फिंग करने के दौरान ही एक ब्लॉग बना लिया जिसमें मैं उन अबूझ सी कहानियों का अनुवाद डालने लगा जो बहुत कम ही पढ़ी जाती थीं या बहुत कम पढ़ने में आती थीं. शुरुआत में यह सब करना बहुत कठिन था. इसमें कई तकनीकी चुनौतियां थीं. सामग्री को जुटाने के लिए बहुत सर्च करनी पड़ती थी. यह भूसे के ढेर में सुई खोजने जैसा काम था. लेकिन इस काम ने मुझे दा विंची के अभिशाप से मुक्ति दिलाने में मदद की. इस काम में मैंने अपनी साहित्यिक और भाषिक क्षमताओं का उपयोग किया. तकनीकी काम में शुरु से ही रुचि होने के कारण मैंने ब्लॉगिंग से जुड़ी कठिनाइयों का समाधान खोजने के लिए अपन प्रॉब्लम-सॉल्विंग एप्रोच की मदद ली. ब्लॉगिंग ही पिछले नौ सालों से वह एकमात्र एक्टीविटी है जिसमें में टिके रह पाया और उन्नति करता रहा.
ये तो रही मेरी कहानी. आपकी कहानी क्या है?
अब मैं आपको यह बताऊंगा कि किस तरह कोई भी व्यक्ति एक तार्किक पद्धति का उपयोग करके यह पता लगा सकता है कि उसके लिए क्या करना सही रहेगा. उन उपायों ये वह यह पता लगा सकेगा कि उसका वास्तविक उद्देश्य क्या है.

अपने उद्देश्य का पता लगाने के लिए आपको पहले एक लंबी विश लिस्ट और फिर एक छोटी लिस्ट बनानी होगी.

इस विधि में तीन स्टेप्स हैं, जिनमें से पहली स्टेप को मैं प्रीसेलेक्शन स्टेप कहता हूं. प्रीसेलेक्शन के दौरान आपको उन एक्टीविटीज़ की बड़ी लिस्ट बनानी है जो आप करना पसंद करते हैं.
कुछ पलों के लिए यह कल्पना कीजिए कि आपके पास बेहिसाब समय और धन है. ऐसे में आप अपनी ज़िंदगी किस तरह बिताएंगे? अब लिस्ट में आप अपने दिमाग में आनेवाली सारी सब एक्टीविटीज़ नोट करते जाएं जैसे आपको पसंद आनेवाले काम, हॉबीज़ और वन-टाइम एक्टीविटीज़ जैसे  किसी विश्वप्रसिद्ध यूनीवर्सिटी में पढ़ाई, ऑस्ट्रेलिया में स्कूबा डाइविंग, पैराशूटिंग, पियानो खरीदना, आदि-आदि. इस लिस्ट में आप अपने अजीबोगरीब सपनों को भी लिख सकते हैं जैसे पॉप स्टार बनना या मंगल ग्रह की यात्रा करना.
आपकी ख्वाहिशों और सपनों की लिस्ट बन जानेपर आप प्रीसेलेक्शन की प्रोसेस शुरु कर सकते हैं. इस स्टेज से गुज़रने के लिए आपको हर एक्टीविटी को तीन शर्तों पर परखना हैः 1. क्या यह बहुत रोचक (फ़न) है, 2. क्या आपमें यह टैलेंट है, और 3. क्या आप इससे पैसा कमा सकते हैं?
अपनी लिस्ट को देखिए और उन एक्टीविटीज़ को गोले से मार्क करते जाएं जो इन तीनों शर्तों को पूरा करती हैं. जो एक्टीविटीज़ इन तीनों शर्तों को पूरा नहीं करतीं उन्हें ढोते रहने में कोई सार नहीं है. जिन एक्टीविटीज़ से आपको कोई आमदनी नहीं हो वे सिर्फ हॉबी हैं. रोचक नहीं होने पर भी आपको धनवान बनाने वाली एक्टीविटीज़ करने पर आपको खुशी नहीं मिलेगी. जिस एक्टीविटीज़ के लिए आपमें ज़रूरी टैलेंट ही न हो उसके बारे में सोचकर परेशान क्यों होना?
प्रीसेलेक्शन की स्टेज से गुज़रने के बाद हम अगली स्टेप पर जाकर अपने उद्देश्य की परख कर सकते हैं.

इस स्टेप में हम अपनी लिस्ट की व्यावहारिक दृष्टि से और चरणबद्ध तरीके से जांच-पड़ताल करते हैं.

अपनी पहली लिस्ट में हमने उन चीजों का पता लगाया जो टैलेंट, पैसा और फ़न के दायरे में आती हैं. अब हम अपनी रिल्ट को दो प्रश्न पूछकर थोड़ा और रिफ़ाइन करेंगे. पहलाः हमारी हर एक्टीविटी में पैसा कमाने का कितना पोटेंशियल है? दूसराः हर एक्टीविटी को करने पर हमें कितनी मानसिक संतुष्टि मिलेगी?
इस प्रश्नों का चरणबद्ध तरीके से उत्तर देने के लिए हम BCG मैट्रिक्स पद्धति का उपयोग कर सकते हैं.
BCG मैट्रिक्स पद्धति को इसे विकसित करनेवाले Boston Consulting Group के नाम से जाना जाता है. यह सिस्टम कंपनियों को यह जानने में मदद करता है कि उन्हें किन प्रोडक्ट्स् में इन्वेस्ट करना चाहिए. इसके लिए यह प्रोडक्ट्स् को चार श्रेणियों (गाय, श्वान, तारा, और प्रश्नचिन्ह) में बांटता है. अपनी एक्टीविटीज़ को इन चार कैटेगरीज़ में बांटकर हम उस एक्टीविटी का पता लगा सकते हैं जिसे करते रहना हमारे लिए हर तरह से उपयुक्त होगा.
गाय एक्टीविटीज़ वे हैं जो हमें संपन्न बनाती हैं (जैसे दूध देनेवाली गाय) लेकिन जिन्हें करने में बिल्कुल मज़ा नहीं आता. श्वान एक्टीविटीज़ वे हैं जिनसे हमें किसी तरह का लाभ नहीं होता. आप गाय और श्वान एक्टीविटीज़ को दरकिनार कर सकते हैं लेकिन तारा गतिविधियों को नहीं क्योंकि वे आपके ड्रीम ज़ॉब्स हैं, जो आपको धनवान बनाने के साथ-साथ संतुष्टि भी प्रदान करेंगे.
प्रश्नचिन्ह वाली एक्टीविटीज़ वे हैं जिन्हें आप करना पसंद करते हैं लेकिन जिनसे किसी तरह की आय होने की संभावना न के बराबर है. आप इन एक्टीविटीज़ को कचरे के डिब्बे में नहीं फेंक सकते. आप इन्हें करना ज़ारी रखें और उन तरीकों का पता लगाने की कोशिश करें जो आपको इन एक्टीविटीज़ के ज़रिए कुछ कमाने का अवसर दें. अगर आप लकी होंगे तो एक दिन ये एक्टीविटीज़ आपको बहुत लाभ पहुंचा सकती हैं.
यदि आपने अपनी गाय, श्वान, तारा, और प्रश्नचिन्ह एक्टीविटीज़ को पहचान लिया हो तो हम अब तीसरी और फ़ाइनल स्टेप की ओर बढ़ेंगे.

इसके लिए हमें अपने डर, टालमटोल की आदत, मेंटल ब्लॉक और नारसीसिज्म के बीच संतुलन कायम करना होगा.

पहली दो स्टेप्स ने हमें अपनी प्रिय एक्टीविटीज़ को पहचानने और उनकी परख करने में सहायता की. तीसरी स्टेप में हम यह सुनिश्चित करते हैं कि हमारा बनाया नया प्लान ध्वस्त न हो जाए. चलिए देखते हैं कि हमें अपनी कार्ययोजना को कुशलतापूर्वक पूरा करने के लिए किन बाधाओं को पार करना ज़रूरी है.
सबसे पहले हमें थोड़ा भय चाहिए… थोड़ा सा डर… ज्यादा नहीं.
यदि आपकी नई योजना आपको ज़रा सा भी भयभीत नहीं करती तो वह पर्याप्त महत्वाकांक्षी योजना नहीं है. और यदि वह महत्वाकांक्षी नहीं है तो आपको खुशी नहीं दे पाएगी.
वहीं दूसरी ओर यदि आप अपनी योजना को लेकर अधिक भयभीत हो तो आपने सायद बहुत ऊंचे मंसूबे बना लिए हैं. आपको अपनी योजना को पुनरावलोकन तब तक करना चाहिए जब तक आप किसी संतुलन तक नहीं पहुंच जाओ… वह संतुलन जहां भय न तो अस्पष्ट हो और न ही प्रचंड हो.
दूसरी ज़रूरी चीज़ यह है कि हम टालमटोल करने से पूरी तरह से बचें. यदि हम टालमटोल करते रहेंगे तो हम अपने लक्ष्य की दिशा में एक कदम भी नहीं चल सकेंगे. किसी-किसी दिन थोड़ा आलसी हो जाना चलता है लेकिन इसे अपनी आदत बना लेना बहुत बुरा होगा.
तीसरा, हमें अपने क्रिएटिव ब्लॉक पर जीत हासिल करनी होगी. हम सभी अपने महत्वाकांक्षी ड्रीम प्रोजेक्ट पर मन लगाकर काम कर रहे होते हैं पर किसी दिन हमें अचानक यह अहसास होता है कि हमारी सारी इन्सपिरेशन गायब हो गई है. लोगों को लगता है कि ऐसा आलस के कारण होता है लेकिन यह गलत तथ्य है. असल में होता यह है कि हम यह भूल जाते हैं कि क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं. इस क्रिएटिव ब्लॉक से छुटकारा पाने के लिए हमें उस बात की तह तक दोबारा जाकर देखना चाहिए जिसने हमें उस काम में जी-जान से जुट जाने के लिए प्रेरित किया था.
और अंत में हमें अपने नारसीसिज्म को संभालना होगा. नारसीसिज्म का मलतब है खुद पर हद से0 ज्यादा गुमान होना या खुद को ही सबसे अधिक पसंद करना. हम सभी में आत्मसम्मान की स्वस्थ भावना होनी ही चाहिए लेकिन कभी-कभी यह इतने गहरे अहंकार में बदल जाती है कि उन्माद या तनाव का कारण बन जाती है. जब हम खुद को या खुद की काबिलियत को लेकर बहुत ऊंचा सोचने लगते हैं तो हमारा व्यवहार विचित्र हो जाता है. ऐसी स्थिति में हम किसी ऐसे व्यक्ति की तरह व्यवहार करने लगते हैं जिसपर कोई जुनून सवार हो गया हो. इस दशा में कुछ समय तक काम करने के बाद जब हमारा सामना वास्तविकता से होता है तो हम डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं क्योंकि हमने बिना सोचेसमझे ही इतने विराट लक्ष्य बना लिए थे जिन्हें पूरा करना हमारे लिए संभव नहीं था.




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Friday, 8 July 2016

स्टीव जॉब्स एप्पल कंपनी का संस्थापक [स्टीव जॉब्स ] का स्टोरी , इन्होने कहा कि जीवन कभी -कभी चोट तो देता है , पर आस्था न खोये...

 स्टीव  जॉब्स    एप्पल कंपनी  का  संस्थापक [स्टीव जॉब्स ]  का स्टोरी 

जीवन  कभी - कभी चोट तो देता है , पर आस्था न खोये 

  • यदि सफल होना है , तो किसी का इन्तजार किये बिन अकेले चलना  सीखना होगा..
ये स्टीव जॉब्स जी  ने कहे कि यदि जीवन में सफल होना है ,तो किसी का इन्तजार किये बिना अकेले चलना सीखना होगा.. 















आपको आपने प्रिये तक पहुचना हि चाहिए 

 तकनीक कि दुनिया में युगांतकारी बदलाव् लाने वाले  स्टीव जॉब्स हमेशा कहते थे-- थिंक डीफफ्रेंट.....
जीवन में  संघर्स के जरिये मुकाम हस्सिल करने वाले , जॉब्स ने bussines मॉडल को न्यू परिभाषा दी थी, मतलब न्यू deffinetion  दिया .
वो एषा मानते थे कि अगर जीवन में हमें सफल होना है , तो किसी का इन्तजार किये बिना  अकेले चलना सीखना होगा.
 स्टीव जॉब्स का  कड़ी स्पीच...




स्टीव जॉब्स ::-

                     इन्होने आपने बदौलत  इस दुनिया में एक अलग हि पहचान बनाया . जो आज  बहुत मायेने रखते है..
विश्व के सर्वश्रेष्ट  विश्वविदालय में  सुमार  इस संस्थान  से ग्रेदुअते बन कर आपके निकलते वक्त साथ मौजूद हो कर मै सम्म्मानित महसूस कर रहा हु. मै किसी कॉलेज से ग्रेजुएट नहीं हुआ . सच कहू , तो किसी ग्रेजुएशन तक पहुच पाने का आज हि मौका  मिला  है.  मै अआपके सम्मुख कोई लम्बा व्याखान नहीं दूंगा , बल्कि आपने जीवन कि तीन सिर्फ तीन काहानिया सुनाऊंगा. पहली कहानी जीवन कि अस्पस्ट सी लगती  घटनाओं का अर्थ बाद में  समझ पाने से सम्बन्ध है. मैंने पहले 6 मानिनो तक पढने के बाद भी रीड कॉलेज कि पढाई छोर दी. मै आपको ये बताना चाहूँगा कि मैंने एषा क्यों किया .यह कहानी मेरे पैदैस से भी पहले प्रारंभ है..
मुझे जन्म देने वाली  माँ  एक कॉलेज में पढ़ी  छात्रा   थी  और उसने यह तय कर राखी थी कि , कि कॉलेज में पढ़े लिखे किसी दम्पति को गोद दे देगी.. इसकी साडी तैयारी भी हो चुकी थी..

 par huaa aisha ki jab maine is duniya me ankhe kholi ,  mujhe god lene ke liye yaitaar dampati ne  antim palo me यह फैशाला किया कि ओ किसी  बालिका को हि गोद लेगी.तब पर्तीक्षा सूचि में  दुश्रे स्थान पर मेरे परसेंट माता पिता. को अधि रात को फ़ोन कर पूछा गया कि क्या आप एक बच्चे को गोद लेंगे.? उनका उतर था कि बिलकुल लेंगे. मेरी माँ को बाद में पत चला कि मेरी माता किसी कॉलेज में नहीं पढ़ी थी और मेरे पिता तो हाई स्कूल भी उतरीं नहीं थे.. इश पर मेरी माँ ने गोद देने के कागजात पर दस्खत करने से इनकार कर दिए, और कुछ  महीनो बाद ओ तभी राजी हुई.. कि मेरे माता पिता उसे बचन  दिए कि उसे कॉलेज जरुर भेजेंगे..१७ वर्षो बाद मै कॉलेज तो चला गया . पर मैंने आपनी नादानी में एक एषा कॉलेज चुन लिया , जो आपके स्टैनफोर्ड जैशा हि महंगा था . और मेरे वह के पढाई में मेरे कामगार माता पिता साडी पूंजी निकली जा रही थी. 6 महिना बाद ,मुझे इसमें कोई सार नजर नही आये. मै नहीं जनता था कि जीवन में मुझे क्या बनना है और मुझे यह भी समझ नहीं  आ रहा था कि किस तरह कॉलेज इसमें मेरी सहायता कर सकता है. इसलिए,जो होगा सब ठीक होगा , एषा मानते हुए. मैंने कॉलेज कि पढाई  को अलबिदा कह दिया , यह वक्त  तो यह खासा डरावना  लग रहा था ,पर पीछे देखने पर यह अब मेरे जीवन का सबसे बेहतरीन  फैश्लो में से एक  लगा करता है., जैसे हि मैंने कॉलेज चोर मेरा उस क्ष में जाने कि बाध्यता समाप्त हो गयी.;
जिनमे पढाये जाने वाले सब्जेक्ट  जिनमे मुझे तनिक भी दिलचस्पी नहीं थी., और उन कक्षों का द्वार पूरा खुल गे जिस में हमें रूचि थी.
 अब मै उस में पूरी रूचि ले सकता था.


यह saबसे  मजेदार यो नहीं थी. अब मुझे होस्टल का कमरा  भी  उपलब्धी न था. सो मै दोस्तों,के कमरे में फर्स पर सोया करता था.,कोक कि खली बोतल बेच कर खाने कि पेशा जुटाया करता था. और हर रविवार सात किलोमीटर पिडल चल कर श्री कृष्ण  मंदिर पहुचता , ताकि  सप्ताह में कम से कम एक बार अच्छा खाना मिल सके, या खा सकू.  किन्तु अपनी जिझ्याषा और अंतर कि प्रेरणा से मैंने यह जो कुछ किया . वः बाद में चल कर  मेरे लिए बहुत मुल्य्बान सीधी हुआ.





मै आपको इसकी एक मिसाल देना चाहूँगा- उन दिनों रीड कॉलेज सुंदर तथा कलात्मक हस्तलिपि के प्रिशिक्षण  के लिए संभवत;  अमेरिका का सर्वोतम केंद्र था ,चुकी मै अपनी समान्य कक्ष्ये छोर चूका था. अत: मैंने हस्तलिपी कि  क्ष ज्वाइन करने का फैश्ला किया  और वह हाँथ तथा  छपाई के सुंदर अक्षरों कि जिन बारीकियो से मेरा परिचय हुआ, वः; सब  मुझे अत्यंत अकर्सन लगा.उस वक्त मेरे जीवन में इनके किसी व्यवहारिक इस्तेमाल कि कोई सम्भावना न थी. मगर एक दशक बाद , जब हमने आपने मैक[ मकिन्तोश] कोउम्पुटर कि  desine में लगे  थे, अचानक ये सब मेरे काम आ गया और हमने उसमे तरह तरह के फौल्ट डाले., चुकी फिर विंडोस ने  बस यही चीज मैक से कॉपी कर ली, तो सम्भावना यही बनती है. यदि मैंने सुलेखन कि वे कक्षाए न कि होति ,तो आज किसी भी किस्म के पर्सनल कोउम्पुटर में वे उत्कृत नहीं होते व्. जो उनमे हुआ करते है.


आप जीवन कि अस्पस्ट सी लगती घटनाओं  के अर्थ  आगे देखते हुए नहीं बल्कि पीछे देखते हुए.  पीछे देख कर हि  हि समझ सकते है. यह आप यकीं कर सकते है. कि ये घटनाये किसी - न किसी  तरह  भविष्य में हि साफ़ हो सकेंगी. इसके लिए आपको किसी चीज में आस्था टिकाये हुए रहना होगा.. - उसे आप अत; प्रेरणा भक्तिव्यता, ज़िन्दगी या कर्म, चाहे जो भी कह ले . मेरे इस नजरिये से मुझे कभी धोखा नहीं हुआ और इसी से मेरे जीवन के सारे बदलाव मुमकिन हो सके. 
 मेरे जीवन के सारे  बदलाव  मुमकिन हो सके.
मेरी दूसरी खानी प्रेम और उसे खोने का  बिषय में है..
मै इस मामले में भाग्यशाली रहा कि मैंने जो करना चाहा, उसे जीवन में पा हि लिया. स्टीव  वाजनीएक और मैंने जब मेरे माता -पिता के गेरेज में एप्पल कि शुरुआत कि,तब मै बस 20 बरस का था. हमने कड़ी मेहनत कि  और १० वर्षो में हि एप्पल  हम दो जाने से बढ़ कर  दो अरब डोलर कि कंपनी में बदल गयी जिसमे 4000 कर्मचारी काम करते थे , एक वर्ष पह्ले हमने सबसे बेहतरीन उत्पाद ,मैकिन्टोश का श्रृजन किया था और मै अभी अभी 30 वर्षो का हुआ  था, तभी अचानक कमपनी ने हमें निकाल दिया .

मै  लगभग  निश्चित हु कि यदि मुझे एप्पल से  नहीं निकला गया होता , तो इनमे से कुछ भी न हुआ होता _ दावा कडवी तो लगी , पर मेरा अनुमान है कि मरीज को उसकी जरुरत थी. जीवन आपको कभी कभी चोट जरुर पहुचता है , पर आप आपनी आस्था न खोये. मुझे पूरा यकीं है कि जो एक चीज मुझे आगे बढाती रही , वह आपने काम से प्यार थी.
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एकऐसा कंपनी  जिसे आपने हि खरी कि हो,उससे आपको निकला कैसे जा सकता है? दरअसल में  हुआ एषा कि जब एप्पल का विकाश हुआ , तो हमने उस में एक व्यक्ति को भारती किया ,जिसके बारे  में मेरी धरना थी  कि ओ मेरे साथ मिल कर उसे भली बहती चला सके. कुछ दिनों तक ओ सब ठीक रहा  . मगर  फिर भविष्य को लेकर हमारा विज़न अलग होते गए. और अंतत: वह बिंदु आ गए . जब हमें अलग होना हि था. और जब हमने जोर देना अज्मैस कि तो कंपनी का मंडल उशी आदमी का साथ देना  मंजूर किया  और इस तरह , जिसमे मैंने आपनी साडी एनर्जी power laga di . usi se bahar kar diya gaya. 

mai tut saa gaya . kuch mahino tak mujhe samjh me nahi aaya ki mai kya karu. akhir mai karu kya . mai sabhi trah se bifal sabit ho chuka tha. aur maine silicon waili chor dene tak ke vishy me bhi soch liya tha., ha lekin mujhe deere deere  yah pratitr hone laga ki jo mai kar raha tha, usme mera pyaar ab bhi kayam hai. , mera pyar aapni jgah ab bhi kayam hai. so maine ekbaar fir se shuruaat karne ka faishla kiya ..

तब मै इसे नहीं समझ पाया ,पर बाद में मुझे महसूस हुआ कि एप्पल  से मुझे निकला जाना मेरे जीवन  सबसे सृजनात्मक  दौर  में प्रेबेश करने को उन्मुक्त कर दिया.   आगले पञ्च वर्षो के दौरान मैंने नेक्सस नमक , कंपनी और फिर पिक्सर नाम कि दूसरी कंपनी  शुरू कि  और एक ऐशी कमाल कि महिला से मोहब्बत कि  जो बाद में मेरी पत्नी बनी . पिक्सर ने फिर टॉय स्टोरी नमक विश्व कि पहली कंप्यूटर अनिमेटेड फीचर फिल्म बनाई  और वह अब विश्व कि सबसे सफल अनिमेतिओं स्टूडियो है . फिर कुछ अनोखा संयोग से फिर एप्पल ने नेच्क्सोस को खरीद लिया  , और मै पुन: एक बार एप्पल में आ गया ..नेक्सस में जो हमने टेक्नोलॉजी बिकसित कि थी , आज वही  एप्पल के नव कलेवर के केंद्र में स्थित है  और लोरिन    और मेरा एक बेहतरीन परिवार है.

 मै निश्चित हु  कि अगर मुझे एप्पल से निकला नहीं गया होता तो , ये इनमे से कुछ भी नहीं हुआ होता . दावा कडवी तो लगी , पर मेरा अनुमान है कि मरीज को उसकी जरुरत भी थी . जीवन कभी कभी आपनो को चोट जरुर पहुचता है. पर आपनीं  आस्था न खोये. मुझे पूरा यकीं जो एक चीज मुझे आगे बदाय .  वह आपने काम से प्यार थी .आप किस चीज से प्यार करते है .इसकी तलाश आपको हि करनी है. यह आपके काम के लिए जितना सच है, उतना आपके प्रिये व्यक्ति को लेकर  भी है. आपका काम आपके जीवन के एक बड़ा हिस्सा होने जा रहा है. और सच्ची संतुस्ती हासिल करने के लिए आपको वह करने कि जरुरत है. जिसके बारे में आपको यह यकीं हो कि यह एक महँ कार्य है. और एक महँ कार्य करने के एक तरीका यही है. जो आप करते है. उससे आपको प्यार हो. यदि आप अब तक उसे नहीं पा सके , तो उसकी तलाश में लगे. समझौता न करे . दिल से सम्बन्धी  चीजो के भांति  जब आप अपना प्रिये काम तलाश लेंगे , तब आप जान जायेंगे, और किसी भी महान रिश्ते  कि तरह साल दर साल , आपका वह काम बेहतर से बेहतरीन होता चला जायेगा.\





 मेरी तीसरी कहानी मौत के बिषय में?
मै जब 17 वर्ष का था  तब मै किसी  कि कही एक बात पढ़ी , जो कुछ इस तरह थी : ' यदि आप हर दिन इस बहती जिए जैसे वह आपका अंतिम दिन  है. तो एक दिन आप निश्चित रूप से  नसाही होंगे. इसक मुझ पर गहरा असर परा   तब से लेकर पिछले 33 वर्सो के  दौरान मै रोजाना सुबह  आइने के सामने जाकर खुद से पूछता रहा हु: यदि आज मेरे जीवन का अंतिम दिन हो. तो क्या मै वह करना चाहूँगा, जो मै करना चाहता हु , या जो मै करने जा रहा हु.? और जब भी कई दिनों तक इसक उतर न मिले , तब समझ लेना  कि मुझे कही से कुछ तब्दील करने कि जरुरत है.

यह याद रखना कि मै जल्दी मरने वाला हु .  मुझे मिला  एषा  सब्स्ज़े अहम् साधन  है, जिसने आपने जीवन में बड़े फैशाले करने  में मेरी मदद कि  है.क्यूंकि लगभग सभि चीजे -सभि उम्मीद , सभि  तरह  के दंभ , सर्मिंदगी  तथा  नाकामी के सरे भय, मृतु  के सामने बिलकुल नहीं टिकती. बस सिर्फ वही टिका रहता है, जो सचमुच अहम् होता है. यह आपके द्वारा  कुछ खो देने के भय  से बचने का मेरी जानकारी  में सबसे अच्छा उपाय है .आप तो पहले से  हि नग्न  है. इसलिए ऐशी कोई वजह नही हो सकती कि आप आपने ह्रदय का अनुसरण न करे.


लगभग एक वर्ष मुझे पहले पत चला कि मै  पैनक्रियाज के एक ऐसे कैंसर से पीड़ित हु. जो असाध्य है , और मै बस तीन से छह : महिना जीवित रहने का आशा कर सक्तु हु.  मेरे डॉक्टर ने मुझे बाय सलाह दी कि  , मै इस बीच साडी बंकि बकाया काम निपटा लू. .किन्तु फिर उसी din , आगे कि जाँच से यह पत चला कि  मेरा कैंसर उस अनोखे किस्म का है ..  जिसे ओप्रतिओं से ठीक किया जा सकता है  आखिर वह ओप्रतिओं हुआ , और मै स्वस्थ हु.


यह मेरा मौत से सबसे करीब सामना था . और आशा है , कुछ के दशक और मिल सके. रोज रोज मृतु  कि कल्पना को खुद के लिए लाभदायक पाने कि बजाये सचमुच उसके इतने करीब पहुच कर मै  अब और ज्यदा यकीं के साथ कह सकता हु ,,कि कोई भी मरना नहीं चाहता . यहाँ तक कि जो लोग स्वर्ग जाना चाहते है . वो भी वह पहुचने के लिए मरना नहीं चाहते. फिर भी मौत  मंजिल है . जहा हम सब को जाना है है.अब तक उस से कोई बच नहीसका .और  मौत को waisha हि होना चाहिए, क्यूंकि वह जीवन का सबसे  बड़ा आविष्कार है, संभवत: , जीवन में परिवर्तन का वह वाहक है., जो पुराने को हटा कर नए का रास्ता साफ किया करता है., आप अभी नए है, पर वह दिन बहुत दूर नहीं , जब आप पुराने पड़ते जायेंगे और अंतत; हटा दिए जायेंगे.
 aapka samay simit hai , ise kisi any ka jivan jeete huye  vyrth na gawaye. रुदियो ke फंदे में न पड़े.- जिसका अर्थ है  दुसरे व्यक्तियों कि सोच के नतीजे के साथ है, दुसरो के विचारो के शोर- शराबे में आपनी अअंतरात्मा कि  आवाजे को गम न होने दे . सबसे अहम् यह है कि आपने ह्रदय तथा अंतर कि प्रेरणा का अनुशरण करे या करने का सहस पैदा करे.. बंकि साडी चीजे गौण है.



थॉट्स ... हमेशा भूखे रहे और , हमेशा बुधु रहे..



( यह भासन 12 जून 2005 को स्टैनफोर्ड  univercity  के दिशांत समारोह में दिया गया था. यह लिखित न्हासन था)


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