Tuesday 31 May 2016

वे बातें जो मैं अब नहीं करता… और क्यों नहीं करता…, they are thing which i do not now

वे बातें जो मैं अब नहीं करता… और क्यों नहीं करता…

thinking by kacper gunia

अब मैं ईश्वर से इस तरह बातें नहीं करता जैसे वह कहीं दूर बैठा कोई निर्मम निर्मोही हो. अब वह मेरे लिए धुंए से काली हो चुकी गहरी गुफाओं में अर्धरात्रि को अपने रक्त से शपथ लेनेवाले शूरवीरों का ईश्वर नहीं है. वह मेरे भीतर ही है और मुझसे इतना प्रेम करता है जितना मैं स्वयं से नहीं करता. वह आकाश से भी अधिक स्पष्ट और असीम है.
मैं स्वयं की दूसरों से तुलना नहीं करता. हर व्यक्ति अपने बनाए हुए मार्ग पर चलता है और वही अपनी गति और लक्ष्य तय करता है. मैं अपनी ज़िंदगी को किसी रेस में तब्दील होते नहीं देखना चाहता.
मैं अपनी भावनाओं से नहीं लड़ता. मैं पत्थर का नहीं बना हूं. यदि खुशी की लहर मुझे बहा ले जाना चाहती है तो मैं बहता हूं. यदि आंसू भर आते हैं तो मैं उन्हें छलकने देता हूं.
मैं वैर नहीं पालता. जो हृदय क्षमा न कर सके वह किस काम का? प्रतिशोध की भावना से कब किसका भला हुआ?
मैं सुधार की भरसक कोशिश किए बिना किसी भी बात की शिकायत नहीं करता. किसी छोटे से बच्चे की नादान शिकायतें और तुनकमिज़ाज़ी ही सही जा सकती है. हर व्यक्ति को परिस्तिथियों में बदलाव लाने का प्रयास हर संभव सीमा तक करना चाहिए.
मैं अपने उन दोषों और कमियों के लिए शर्मिंदा नहीं हूं जिनके लिए मैं कुछ नहीं कर सकता. तुम्हें स्वीकार कर लेना चाहिए कि मैं एक मनुष्य हूं… जिसमें सुधार की संभावनाएं हमेशा मौजूद हैं. यदि तुम मुझे समझ न सको तो मुझे छोड़ देने के लिए स्वतंत्र हो.
मैं दूसरों को अपनी छड़ी से नहीं नापता. मुझे कोई अधिकार नहीं है कि मैं लोगों को अपने बनाए परफ़ेक्शन के उन स्टैंडर्ड से परखूं जिनपर मैं खुद खरा नहीं उतरता.
मैं अपने अतीत की गलतियों के लिए खुद को चोट नहीं पहुंचाता. कल की जा चुकी गलतियां मेरे आज को निर्धारित नहीं करतीं. छोटी-छोटी कामयाबियां और उज्जवल भविष्य की आस मेरा हौसला बनाए रखती है.
मैं अंधेरे को अंधेरे से नहीं काटता. बुराई का सामना बुराई से करने से यह खुद को नहीं काटती बल्कि और विशाल रूप धर लेती है.
मैं सिर्फ थकान होने पर ही विश्राम नहीं करता. यदि मैं पस्त होने से पहले ज़रा ठहरकर दो सांस ले लूंगा तो मैं कभी पस्त नहीं होऊंगा.
मैं भविष्य में इतनी देर नहीं विचरता कि अपने वर्तमान को बिसरा बैठूं. मेरे कल के सपने तभी सच होंगे जब मैं आज उनपर मेहनत करूंगा.
मैं असफल होने के भय को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता. असफल होने की संभावना होती है तो सफल होने की संभावना भी होती है. ज़िंदगी ऐसी ही होती है. मुझे नहीं पता कि मेरे प्रयासों के क्या परिणाम निकलेंगे, लेकिन इतना मैं जानता हूं कि मैं कुछ नहीं करूंगा तो 100 प्रतिशत असफल हो रहूंगा.
मैं दयालुता का मार्ग नहीं रोकता. मैं अंधेरे में प्रेम की ज्योति लेकर चलने और हर दिल को छूकर रौशन करने के लिए ही तो बना था!
मैं ज़िंदगी से मुंह नहीं चुराता और मुझे कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर ले जानेवाली चीज़ की अवहेलना नहीं करता. मैं नहीं चाहता कि दस साल बाद मैं इसका पछतावा करूं कि मुझे खुद को रोकना नहीं चाहिए था, बहुत सी चीज़ों में भागीदारी करनी चाहिए थी, और कई बातों में सबसे पहले आगे आने की हिम्मत दिखानी चाहिए थी.
मैं निराशा में खुद को नहीं खोता. मैं आस्था और उम्मीद की डोर थामे रहता हूं. मेरे दोस्त भी हैं और परिजन भी… और गर सब कुछ मेरा साथ छोड़ दे तो भी ईश्वर मेरे साथ सदा रहेगा.

Oreoluwa-Fakorede
नाइज़ीरियन ब्लॉगर Oreoluwa Fakorede ने जैसा Medium.com पर लिखा




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